जप क्या है?
हमारे सनातन हिन्दू धर्म में जप का एक महत्वपूर्ण स्थान है जप का मूल भाव होता है- मनन। अर्थात जिस देव का मंत्र जाप किया जा रहा है उस देव का मनन करना।
हमारे शास्त्रों के अनुसार मंत्रों का जप पूरी श्रद्धा एकाग्रता और आस्था से करना चाहिए। साथ ही मन का संयम मंत्रों के जप के लिए बहुत आवश्यक होता है। बिना एकाग्रता के मंत्रों की शक्ति कम हो जाती है और लक्ष्य प्राप्ति में उनका प्रभाव नहीं होता है।
आइये जाने मंत्र जाप के महत्वपूर्ण नियम क्या है:-
१-मंत्रों जप के दौरान सही मुद्रा या आसन में बैठना भी बहुत जरूरी है तभी सही लाभ होगा। जप के लिए पद्मासन श्रेष्ठ होता है। इसके अलावा वीरासन और सिद्धासन या वज्रासन को प्रभावी माना जाता है।
२-मंत्र जप सही समय में करना भी बहुत जरूरी है। इसके लिए ब्रह्ममूर्हुत या सूर्योदय से पहले का समय श्रेष्ठ माना जाता है। प्रदोष काल यानी दिन का ढलना और रात्रि के आगमन का समय भी मंत्र जप के लिए उचित माना गया है।
३-अगर यह वक्त भी साध न पाएं तो सोने से पहले का समय भी चुना जा सकता है।
४-मंत्र जप प्रतिदिन एक निर्धारित समय पर ही करें।
५- मंत्र जप प्रारम्भ करने के बाद बार-बार स्थान परिवर्तन न करे। एक स्थान नियत कर लें।
६ -मंत्र जप में जिस देवी या देवता के मंत्रो का जप किया जा रहा है उसके अनुसार तुलसी, रुद्राक्ष, चंदन या स्फटिक की 108 दानों की माला का उपयोग करें। यह प्रभावकारी मानी गई है।
७ -किसी विशेष जप के संकल्प लेने के बाद निरंतर उसी मंत्र का जप करना चाहिए।
७ -किसी विशेष जप के संकल्प लेने के बाद निरंतर उसी मंत्र का जप करना चाहिए।
८-मंत्र जप के लिए आसान का चयन भी अवश्यक है । कच्ची जमीन, लकड़ी की चौकी, सूती या चटाई अथवा चटाई के आसन पर बैठना श्रेष्ठ है। सिंथेटिक आसन पर बैठकर मंत्र जप से बचें।
९- समय के अनुसार मंत्र जप करते समय अपने मुँह की दिशा निर्धारित करे। मंत्र जप दिन में करें तो अपना मुंह पूर्व या उत्तर दिशा में रखें और अगर रात्रि में कर रहे हैं तो मुंह उत्तर दिशा में रखें।
१०-मंत्र जप के लिए एकांत और शांत स्थान चुनें। जैसे- कोई मंदिर या घर का देवालय।
११-मंत्रों का उच्चारण करते समय यथासंभव माला दूसरों को न दिखाएं। हो सके तो माला को आप किसी वस्त्र की सहायता से ढक ले। अपने सिर को भी कपड़े से ढंकना चाहिए।
१२ -माला का घुमाने के लिए अंगूठे और बीच की उंगली का उपयोग करें।माला घुमाते समय माला के सुमेरू यानी सिर को पार नहीं करना चाहिए, जबकि माला पूरी होने पर फिर से सिर से आरंभ करना चाहिए।
जप के लिए दिशा निर्णय:-
1 पूर्वाभिमुख जप करने से शान्ति व उन्नति प्राप्त होती है।
2 आग्नेय कोण की ओर मुख करके जप करने से अशान्ति व क्रोध आता है।
3 दक्षिणाभिमुख जप करने से उद्दण्डता आती है।
4 नैऋत्य की ओर मुख करने से अशुभ होता है।
5 पश्चिमाभिमुख जप करने से ऐश्वर्या की प्राप्ति होती है।
6 वायव्य की ओर मुख करने से फल की हानि होती है।
7 उत्तराभिमुख जप करने से शुभ होता है।
8 ईशान की ओर मुख करने से सर्व कार्य की सिद्धि होती है।
adbhud
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