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गुरुवार, 2 मार्च 2017

शुन्य है जीवात्मा तो अंक है परमात्मा जाने कैसे?

एक बार की बात है अंक और शून्य आपस में बैठे हुए थे। शून्य ने अंक से कहा कि मेरे कारण ही तू बड़ा बनता है। जैसे-जैसे मैं तेरे पीछे लगता हु तू दस गुना बढ़ता जाता है उदाहरण के लिए 1 के आगे 0 लगा तो 10 हो गया 10 के आगे 0 लगा तो 100 हो गया कहने का अर्थ है की 0 के लगने से अंक की शक्ति दस गुनी बड़ जाती है। तभी अंक ने कहा की तू चाहे मेरे पीछे जितनी बार भी लग ले पर यदि मैं तेरे सामने से हट गया तो तेरा कोई अर्थ नहीं है अर्थात यदि 10000000 में से केवल 1 हो हटा दिया जाय तो बाकी के सभी शून्य का कोई महत्त्व नहीं बचत वह केवल शून्य हो जाता है।

इसी प्रकार जीवात्मा और परमात्मा के लिए कहा गया है:-

राम नाम को अंक है, सब साधन है शून्य।
अंक गए कछु हाथ ना, अंक रहे दश गुन।।

इसी प्रकार का कुछ सम्बन्ध जीवात्मा और परमात्मा में भी है अंक है परमात्मा और शून्य है जीवात्मा। जब तक शून्य जीवात्मा के भीतर भगवान् रुपी अंक की शक्ति है तब तक ही जीवात्मा का अस्तित्व है जिस दिन भगवान् अपनी शक्ति हमारे सामने से खीच ले उस दिन हमारा अस्तित्व समाप्त हो जायगा। अतः कभी अपने रूप, सौंदर्य, धन-दौलत, मान-सम्मान, गुण, ज्ञान आदि का कभी अहंकार नहीं करना चाहिए। सभी कुछ भगवान् का दिया है और उनकी कृपा से ही मिला है हमारा इसमें कुछ भी नहीं यह भावना मन में रखन चाहिए। कर्म और ज्ञान का अहंकार करने वालो का पतन निश्चित होता है।

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