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मंगलवार, 21 मार्च 2017

जीव लोहा तो संत लकड़ी की भाँती है जाने कैसे !!

भौतिक शास्त्र के अनुसार यदि लोहा और लकड़ी दोनों को अलग अलग पानी में डुबोया जाय तो लोहा डूब जाता है पर लकड़ी नहीं डूबती। पर यदि लोहे को लकड़ी के सहारे से पानी में डूबोया जाय तब वह लोहा भी पानी में लकड़ी के सहारे तैरने लगता है।

इसी प्रकार हमारे जीवन में भी हम जीव लोहे की भाँती है और सदगुरु या संत लकड़ी की भाँती है और यह संसार एक भवसागर है। इस भवसागर को जब जीव अकेले अपने बुते पर पार करना चाहता है तब वह डूब जाता है। पर यदि वह किस संत या सदगुरु का आश्रय लेकर पार करता है तब वह सदगुरु उसे डूबने से बचा लेते है और अपनी कृपा और सदमार्ग का आश्रय देकर जीव को इस भव सागर से पार करा देते है।

अतः प्रत्येक जीव को चाहिए की वह इस भवसागर से पार होने के लिए इसमें डूबने से बचने के लिए किसी सदगुरु या संत का आश्रय अवश्य ले क्योकि जीव माया जनित होता है वह कितना भी यत्न कर ले इस संसार के चक्र में फंस कर उसे डूबना ही है पर समर्थ संत की संगती उसे इस चक्र से बचा कर भाव सागर पार करा देती है।


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