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गुरुवार, 30 मार्च 2017

नवरात्रि मनाने के आध्यात्मित, वैज्ञानिक और शारीरिक कारण!!

नवरात्रि का अर्थ- नवरात्रि शब्द दो शब्दों से मिल कर बना है "नव अहोरात्रों" अर्थात नव विशेष रात्रियाँ। इन नव रात्रियों को सिद्धि का प्रतिक माना गया है। हमारे सनातन हिन्दू धर्म में दिन के साथ साथ रात्रियों का भी बहुत अधिक महत्त्व माना गया है। हमारे कई प्रमुख त्यौहार रात्रि में ही मनाया जाता है जैसे-नवरात्रि, दीपावली, होली, शिवरात्रि आदि। आइये जाने नवरात्रि मनाने के आध्यात्मिक, वैज्ञानिक और शारीरिक कारण क्या है?

आध्यात्मिक कारण:- हमारे सनातन हिन्दू धर्म में शक्ति पूजन का एक महत्वपूर्ण स्थान है। शक्ति पूजन में माता शक्ति के विविध स्वरूपो की पूजन किया जाता है जिसमे नव देवियां प्रमुख है जो कि नवरात्रियों में एक एक दिन पूजी जाती है-

प्रथमं शैलपुत्री च द्वितीयं ब्रह्मचारिणी।
तृतीयं चन्द्रघण्टेति कूष्माण्डेति. चतुर्थकम्।।
पंचमं स्कन्दमातेति षष्ठं कात्यायनीति च।
सप्तमं कालरात्रीति.महागौरीति चाष्टमम्।।
नवमं सिद्धिदात्री च नवदुर्गा: प्रकीर्तिता:।
उक्तान्येतानि नामानि ब्रह्मणैव महात्मना:।।

नवरात्रि में साधक अपनी शक्ति अनुसार व्रत नियम आदि ले कर शक्ति की उपासना करते है। इन नव दिनों में साधक संयम योग और विभिन्न साधनो द्वारा साधना कर शक्ति के विभिन्न स्वरूपो का ध्यान करते है। देवी के प्रमुख शक्ति पीठो और मंदिरो में भक्तो का तांता लगा होता है। जो भक्त इन स्थानों पर नहीं जा पाते वे घर पर ही साधना भक्ति करते है। ऐसी मान्यता है की रात्रि के समय में देवी की उपासना करने पर सिद्धियां शीघ्र प्राप्त होती है। इन रात्रियों में किये गए संकल्प साधना का पूण्य क्षय नहीं होता। नवरात्रो में देवी की उपासना करने से वर्ष भर चेतना शक्ति बनी रहती है।

वैज्ञानिक कारण:- नवरात्रि को मनाने के वैज्ञानिक कारण भी है। हम अपने दैनिक जीवन में एक बात अनुभव करते है की दिन की अपेक्षा रात्रि में ध्वनि तरंग अधिक दूरी तय करता है अर्थात रात्रि में हमें दूर कर ध्वनि सुनाई देती है इसका कारण है की रात्रि में दिन के सामान कोलाहल नहीं होता साथ ही सूर्य की किरणे भी नहीं होती क्योकि सूर्य की किरणे ध्वनि से उत्पन्न रेडियो तरंगो को रोकने का कार्य करती है जिससे ध्वनि तरंगे अधिक दूरी तय नहीं कर पाती। 

रेडियो का प्रयोग भी जब हम करते है तब वह दिन की अपेक्षा रात्रि में अधिक स्पस्टता के साथ हमें सुनाई देता है।

इसीप्रकार नवरात्र को रात्रि में ही इसलिए मनाया जाता है क्योकि रात्रि के समय सकारात्मक ऊर्जा को आसानी से एक स्थान से दूसरे स्थान तक भेजा जा सकता है। हमारे ऋषि मुनियो ने रात्रि को ही इस लिए चुना क्योकि रात्रि में प्रकृति के सारे अवरोध समाप्त हो जाते है और साधक जो भी संकल्प के साथ अपनी तरंगे भेजता है वे शीघ्र ही फल देने वाली होती है।

शारीरिक कारण:- नवरात्रि को मनाने के शारीरिक कारण भी है। नवरात्रियाँ वैसे तो एक वर्ष में चार बार मनाई जाती है जिसमे दो गुप्त और दो प्रत्यक्ष नवरात्रियाँ होती है। प्रत्यक्ष नवरात्रियाँ चैत्र और क्वार माह में शुक्ल पक्ष की प्रतिपदा से नवमी पर्यन्त मनाया जाता है। इन दोनों महीनो में ऋतू परिवर्तन का समय होता है अर्थात एक ऋतू समाप्त हो कर दूसरी ऋतू का आरम्भ होता है। यह ऐसा समय होता है जिसमे वातावरण में विभिन्न प्रकार के संक्रामक कीटाणु अधिक मात्रा में पाया जाता है जिससे बीमार पड़ने की संभावना बड़ जाती है। अतः इन नवरात्रो में नव दिनों तक व्रत उपवास करके साधक अपने शारीरिक संतुलन को बनाये रखता है।

मनुष्य के शारीर में नव द्वार होते है अतः साधक इन नव रात्रियों में अपने नवो द्वार की शुद्धि करता है। वैसे तो हम प्रतिदिन ही अपने शरीर की साफ़ सफाई करते है पर प्रत्येक छः माह के बाद आने वाले इन नवरात्रियों में हम अपने आहार, विचार और नियम संयम के द्वारा अपने शरीर के बाहर और भीतर के अंग प्रत्यंग की साफ़ सफाई करते है। ताकि शरीर में संतुलन बना रहे।

रात्रि में पूजन के समय किये जाने वाले शंख, घंटे और घड़ियालों की ध्वनि से वातावरण में व्याप्त शुक्ष्म कीटाणु नस्ट हो जाते है।सात्विक आहार के व्रत का पालन करने से शरीर की शुद्धि, साफ-सुथरे शरीर में शुद्ध बुद्धि, उत्तम विचारों से ही उत्तम कर्म, कर्मों से सच्चरित्रता और क्रमश: मन शुद्ध होता है, क्योंकि स्वच्छ मन मंदिर में ही तो ईश्वर की शक्ति का स्थायी निवास होता है।

इस प्रकार नवरात्र मनाने के अलग अलग आध्यात्मिक, वैज्ञानिक और शारीरिक कारण है जिन कारणों को दृष्टिगत करते हुए हमारे ऋषि मुनियो ने नवरात्र में शक्ति उपासना करने की परम्परा स्थापित की है।


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