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रविवार, 30 अक्तूबर 2016

जानिये सब को देने वाली लक्ष्मी ने बलि से क्या माँगा ?

एक बार की बात है भक्त प्रह्लाद के पौत्र राज बलि यज्ञ कर रहे थे तभी उनकी यज्ञशाला में नारायण प्रभु का वामन भगवान् के रूप में आगमन हुआ। वामन भगवान् बलि के द्वार पर खड़े हो कर दान की याचना करने लगे। तब बलि वहाँ आकर वामन भगवान् से मन चाहा दान माँगने को कहा तब भगवान् ने तीन पग भूमि मांगी। फिर बलि ने संकल्प कर के तीन पग भूमि का दान किया। अब वामन भगवान् ने तुरंत अपना रूप वामन से विराट किया और पहले चरण में नीचे के लोक और दूसरे चरण में ऊपर के सारे लोक नाप लिए इस तरह से भगवान् ने दो पग में सारे ब्रह्माण्ड को नाप लिया और बलि से तीसरा पग रखने के लिए स्थान माँगने लगे। तब बलि ने अपने शिर पर तीसरा पग रखने को कहा तब वामन भगवान् ने तीसरा पर बलि के सिर पर रखा।

भगवान् बलि के इस भाव पर प्रसन्न हुए और बलि को आने वाले मन्वन्तर में इंद्र बनने का आशीर्वाद दिया और तब तक बलि को सुतल लोग में वास करने को कहा। फिर भगवान् ने बलि से कहा मै तुम्हारे दान देने की प्रवित्ति से बहुत प्रसन्न हूँ आज से तुम्हारे दान देने की प्रवित्ति के लिए इस दान का नाम "बलिदान" के नाम से जाना जायगा साथ ही बलि से  मांगो क्या माँगना चाहते हो कहकर वर माँगने कहा। तब बाली ने कहा प्रभु अभी अभी मैंने ही आप को ये सम्पूर्ण सृष्टि दान की है और मै दान की हुई वस्तु वापस नहीं ले सकता। हे प्रभु आप अगर मुझे कुछ देना ही कहते हो तो मै आप से आप को ही मांगता हूँ। तब भगवान् वामन ने बलि से कहा ठीक है राजा बलि तुम अगले मन्वन्तर के आने तक सुतल लोक में वास करना और मैं तुम्हारा द्वारपाल बनकर नित्य तुम्हारे साथ रहूँगा और भगवान् वामन बलि को ले कर सुतल लोक चले गए।

 अब नारद जी ये सारा वृत्तांत सुनाने लक्ष्मी जी के पास पहुचे और कहने लगे की हे माता आज से आप संन्यास ले लो क्योकि अब आप के पति भगवान् नारायण अब आपके पास आएँगे नहीं। लक्ष्मी जी नारद जी के इन टेड़े बातो को सुनकर नारद से कहा की बात क्या है नारद जी बताइये। तब नारद जी ने लक्ष्मी जी से कहा की आप के पति ने नई नौकरी ढूंढ ली है "राजा बलि के यहाँ द्वारपाल की"। तब माता लक्ष्मी ने नारद जी से कहा कि मै अपने पति भगवान् नारायण को कैसे प्राप्त कर सकुंगी तब नारद जी ने माता लक्ष्मी को संकेत कर दिया की बलि के कोई बहन नहीं है।

माता लक्ष्मी नारद जी के संकेत को समझ गई और सुतल लोक में राजा बाली के पास एक सामान्य स्त्री का रूप धारण  कर आ गई। फिर राजा बलि को लगा की कोई स्त्री हमारे द्वार पर कुछ माँगने आयी है और माता लक्ष्मी से पूछा की आप को क्या चाहिए निःसंकोच कहिये। तब माता लक्ष्मी ने कहा की मेरे कोई माँ बाप नहीं है न ही कोई भाई है मुझे भी अन्य स्त्रियो की भाँती अपने मायके जाने की इच्छा होती है पर मैं कहा जाऊ और रोने लगी। तब बलि ने कहा की बहन तुम्हारा कोई भाई नहीं है और मेरी कोई बहन नहीं है तो आज से हम दोनों भाई बहन हुए। फिर माता लक्ष्मी ने बलि को रक्षासूत्र बाँधा और बलि ने अपनी बहन से कुछ माँगने को कहा तब माता लक्ष्मी ने कहा भैया मेरे पास किसी बात की कमी नहीं है बस तुम अपने द्वार पर खड़े इस द्वारपाल को मुक्त कर दो तब राज बलि ने माता लक्ष्मी से पूछा की बहन तुम इस द्वारपाल को मुक्त करने क्यों बोल रही हो तुम्हारा इन से क्या सम्बन्ध है। तब भगवान् लक्ष्मी-नारायण चतुर्भुज रूप में प्रकट हो गए। रजा बलि ने जब यह बात जाना कि उन्होंने जिसे अपनी बहन बनाया है वो साक्षात् माता लक्ष्मी है तब वो माता लक्ष्मी से क्षमा माँगने लगे। तब माता लक्ष्मी ने कहा कि इसमें आप का कोई अपराध नहीं है मैं ही यहाँ अपने पति नारायण को वापस ले जाने आयी थी। फिर माता लक्ष्मी भगवान् नारायण को बलि से मुक्त कराकर बैकुंठ ले गयी।

जहाँ नारायण होते है वहां लक्ष्मी स्वयं ही चल कर आ जाती है। आज कल बहुत से लोग लक्ष्मी जी के पीछे पड़े रहते है। कदाचित लक्ष्मी किसी के यहाँ अकेली जाती नहीं है और जाती है तो उसको रुलाती है। लक्ष्मी जी जिनके घर में नारायण के साथ आती है उन्ही को सुखी करती है। जहाँ नारायण की सेवा होती है वह लक्ष्मी बिना आमंत्रण के आ जाती है। जिस प्रकार बलि के घर ने नारायण विराजमान थे तो माता लक्ष्मी स्वयं चलकर वहाँ आ गयी। बलि ने अपने जीवन में दान की प्रवृत्ति को अपना कर बहुत सत्कर्म किये इस लिए नारायण उनको प्राप्त हुए और नारायण के आते ही लक्ष्मी भी वह स्वयं चल कर आ गयी। इसलिए-
सत्कर्म में लोभ रखो।
भोजन में संतोष रखो।
संसार सुख में संतोष रखो।
 भक्ति में लोभ रखो।
एक सत्कर्म पूरा हो तो दूसरा सत्कर्म करो दूसरा पूरा हो तो तीसरा करो।
जो हमेशा सत्कर्म करते है लक्ष्मी नारायण उन्ही को प्राप्त होते है।


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