स्वास्थ्य

पृष्ठ

शनिवार, 29 अक्तूबर 2016

जानिये लक्ष्मी का समर्पण किसे करे?

जानिये लक्ष्मी का समर्पण किसे करे

लक्ष्मी का समर्पण हमेशा नारायण को करना चाहिए क्योकि लक्ष्मी सदा से केवल नारायण की ही है और उन्ही की रहेंगी। यदि हम लक्ष्मी का समर्पण नारायण के प्रति नहीं करते है तो नारायण किसी न किसी रूप में आ कर लक्ष्मी का हरण कर लेंगे। अब आइये एक दृष्टान्त के माध्यम से जाने कैसे:-

द्वापर में जब भगवान नारायण ने श्रीकृष्ण के रूप में अवतार लिए थे तब उनकी प्रिया लक्ष्मी ने रुक्मणी के रूप में अवतार लिया था। रुक्मणी के रूप में लक्ष्मी जी ने विदर्भ देश के राजा भीष्मक जी के यहाँ जन्म लिया था जब से रुक्मणी ने होश सम्हाला तब से सारे ऋषि मुनियो के मुख से कृष्ण के गुणों का गान सुन सुन कर उनके प्रति प्रेम जागृत हो गया। भीष्मक जी भी चाहते थे की उनका विवाह कृष्ण के साथ ही हो पर उनका बड़ा बेटा रुक्मी अपनी बहन रुक्मणी का विवाह शिशुपाल के साथ करना चाहता था। तब रुक्मणी ने अपने प्रेम भाव एक पत्र के माध्यम से व्यक्त कर अपने पुरोहित के द्वारा श्री कृष्ण तक पहुचाया। फिर श्री कृष्ण ने यह जानकार की रुक्मणी मुझ से प्रेम करती है पर उसकी इच्छा के विरुद्ध उनका विवाह शिशुपाल से किया जा रहा है तो भगवान् तुरंत रथारुण हो कर विदर्भ की ओर चल पड़े और वहा जा कर राक्षस विधि से रुक्मणी जी से विवाह किया (राक्षस विवाह वह होता है जिसमे कन्या के घर वालो के इच्छा के बिना कन्या का हरण कर लिया जाय।)।

इस प्राकार इस दृष्टान्त में रुक्मणी लक्ष्मी है श्री कृष्ण नारायण है। रूक्मी ने अपनी लक्ष्मी रुपी बहन  का समर्पण नारायण को नहीं किया साथ ही शिशुपाल जो की रुक्मणी संग विवाह करके लक्ष्मी पति बनना चाहता था। परंतु लक्ष्मी जी को श्रीकृष्ण रुपी नारायण ने हरण करके उन्हें अपनी पत्नी बना लिया और रूक्मी तथा शिशुपाल दोनों को रोना और पश्चाताप करना पड़ा। ऐसे ही हमें भी अपने लक्ष्मी रुपी धन का समर्पण नारायण को करना चाहिए।

लक्ष्मी पति बनने का कभी विचार नहीं करना चाहिए क्योकि लक्ष्मी तो केवल नारायण की ही है और किसी भी माध्यम से लक्ष्मी नारायण के पास चली ही जाएंगी। फिर हम लक्ष्मी के साथ क्या भाव रखे?

संत निर्णय करते है की लक्ष्मी पति तो नारायण ही है बाकी सभी को लक्ष्मी में अपनी पुत्री का भाव या मातृ भाव रखना चाहिए। जिस प्रकार माता अपने पुत्र का लालन पालन करती है उसी प्रकार धन रुपी लक्ष्मी भी हमारा भरण पोषण करती है। या पुत्री भाव रखना चाहिए की जिसमे कभी आशक्ति नहीं आ सकती और जिस प्रकार पुत्री के सयानी होने पर उसे किसी योग्य वर को समर्पण कर दिया जाता है वैसे ही धन रुपी लक्ष्मी का भी समर्पण नारायण के विभिन्न रूपो को कर देना चाहिए। तो चाहे माँ बना लो या पुत्री बना लो पर उसका समर्पण नारायण को ही होना चाहिए।

अब नारायण के भी कई रूप होते है जिसमे आप अपनी धन रुपी लक्ष्मी का समर्पण कर सकते है जैसे:-

1 यदि आप पुत्री को ही अपना धन अर्थात लक्ष्मी मानते है तो किसी योग्य वर की तलाश कर उसका कन्यादान कर देना चाहिए और धन को उस वर नारायण को यथाशक्ति दान देना चाहिए।

2 यदि आप नारायण को मंदिरो में देखते है तो आप को अपनी धन रुपी लक्ष्मी का समर्पण मंदिरो के निर्माण में और जीर्णोद्धार में करना चाहिए।

3 यदि आप को गरीबो में अपने नारायण नजर आते है तो भगवान् का एक रूप दरिद्र नारायण का भी है आप गरीबो को दान करके अपनी धन रुपी लक्ष्मी का समर्पण कर देना चाहिए।

4 भगवान् का एक रूप यज्ञ नारायण का भी है तो यदि आप को यज्ञ भगवान् में अपने नारायण नजर आते है तो आप को बड़े बड़े यज्ञ अनुष्ठान कथा आयोजित कराकर अपने धन रुपी लक्ष्मी का समर्पण यज्ञ नारायण को करना चाहिए।

5 भगवान् विकलांगो के रूप में भी पूजे जाते है तो आप विकलांग जनो को भोजन आवास वस्त्र आदि की व्यवस्था कर भी अपनी धन रुपी लक्ष्मी का समर्पण कर सकते है।

किसी भी रूप में हो लक्ष्मी का समर्पण नारायण को कर देना चाहिए वरना यदि लक्ष्मी शयानी हो गई तो रुक्मणी की भाँती श्री कृष्ण के द्वारा उसका हरण हो जायगा। तो जब धन रुपी लक्ष्मी की अधिकता हो जाय तब उसे किसी न किसी रूप में सद्कर्मो में लगा देना चाहिए और यदि आप ने ऐसा नहीं किया और लक्ष्मी को भोग्या मान लिया तो फिर आप को भी रूक्मी और शिशुपाल की तरह आंसू बहाना पड़ेगा और लक्ष्मी आप को छोड़ कर अपने नारायण के पास चली जायगी।

लक्ष्मी की हमेशा नारायण के साथ ही पूजा करनी चाहिए अकेले नहीं क्योकि जब हम लक्ष्मी नारायण की एक साथ पूजा करते है तो वो गरुण में बैठकर साथ साथ आप के भवन में सदा निवास करते है। पर यदि केवल लक्ष्मी की पूजा अकेले किये और नारायण को भूल गए तो फिर लक्ष्मी उल्लू में सवार हो कर आती है जो की अमंगल का प्रतीक है। और लक्ष्मी फिर हमारी दशा भी ऊल्लू की भाँती कर देती है। जिस प्रकार ऊल्लू रात में जागता है दिन में सोता है उसी प्रकार फिर हमारी भी मति बिगड़ जाती है और हम भी गलत राह से धन कमाने की सोचने लगते है और आगे चल कर विनाश को प्राप्त करते है।

यदि आप किसी दंपत्ति अर्थात पति पत्नी को साथ साथ अपने घर बुलाय तो आप जब तक चाहे दोनों आराम से आप के घर में रह सकते है पर यदि आपने पत्नी को बुला लिया पर पति को नहीं बुलाया तो पत्नी स्वाभाविक रूप से किसी न किसी बहाने पति का चिंतन कर उसके पास वापस चली जायगी। ऐसे ही लक्ष्मी को भी अकेले नहीं बल्कि नारायण के साथ अपने घर में बुलाना चाहिए। एक बार यदि आप ने नारायण को अपने घर में स्थापित कर लिया तो लक्ष्मी तो अपने आप ही उनके पीछे पीछे चली आएंगी। लक्ष्मी चंचला होती है कही भी ज्यादा देर तक नहीं टिकती पर नारायण के साथ आने पर वो स्थिर हो जाती है। चार पुरुषार्थो (धर्म, अर्थ, काम और मोक्ष) में भी अर्थ अर्थात लक्ष्मी रुपी धन का दूसरा स्थान है अर्थात हमारा अर्थ धर्म पूर्वक होना चाहिए। अतः धर्म पूर्वक अपनी मेहनत से कमाया गया धन यदि परोपकार और परमार्थ के भाव से अपने पास रक्खा जाय तो निश्चित ही लक्ष्मी हमारे पास नारायण सहित निवास करेंगी। इसी आशा के साथ की हम सभी लक्ष्मी पति न बन कर लक्ष्मी को मातृ या पुत्री भाव से क्रियात्मक पूजन ही नहीं वरन व्यवहार में भी परमार्थ और परोपकार कर इसका समर्पण नारायण रुपी जरूरतमंदों को करेंगे इसी में हमारे इस दीपावली पर्व की सार्थकता है।

यह भी पढ़े:-
लक्ष्मीजी का समर्पण किसे करे?
लक्ष्मी प्राप्ति हेतु अपात्रता?
नरका चौदस
जाने दीपावली का पौराणिक महत्व क्या है?
धनतेरस कब क्यों और कैसे मनाय?

शिखा क्यों धारण करनी चाहिए?

कोई टिप्पणी नहीं:

एक टिप्पणी भेजें