स्वास्थ्य

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शुक्रवार, 19 मई 2017

लंका भवसागर है!!

हम सभी ने मानस अथवा रामायण का श्रवण मनन या चिंतन किया है। उन्ही में से एक दृष्टान्त स्वरुप संक्षिप्त में विभीषण जी की कथा पर चिंतन करते है रामायण में लंका नाम की एक नागरी का उल्लेख मिलता है जहा रावण नाम का एक राक्षस राज्य करता था। उसका एक छोटा भाई विभीषण था जो की राम भक्त था। विभीषण जी राक्षस होते हुए भी स्वभावतः साधू थे परंतु उस लंका नागरी में रहने के कारण उन्हें चारो तरफ से आसुरी प्रवृत्ति वाले लोगो से घिरे थे। रावण ने अपनी लंका नागरी में अपनी छोड़ अन्य किसी के पूजन पर प्रतिबन्ध लगा रखा था। अतः विभीषण जी श्रीराम के आयुधों का चिन्ह अपने घर पर अंकित कर और तुलसी का बिरवा लगा कर भगवान् की आराधना करते थे। एक दिन माता सीता की खोज करते हुए वहा हनुमान जी आये और उन्होंने विभीषण जी को श्रीराम के स्वरुप का बोध कराया। हनुमान जी के सत्संग का परिणाम यह निकला की विभीषण जी उस लंका नगरी और अपने भाई रावण को छोड़ कर श्रीराम के शरण में चले गए अपना कल्याण कर लिया।

वास्तव में विभीषण है हम सभी जीव और लंका है यह संसार रुपी भवसागर जिसमे यह विभीषण रुपी जीव रावण आदि अनेक रिश्तेदारो और कामनाओ से घिरा होता है पर यदि उस जीव की थोड़ी भी भगवान् के प्रति श्रद्धा है तो हनुमानजी जैसे सच्चे संत का सत्संग उसे प्राप्त अवश्य होता है और उस सत्संग के प्रभाव से श्रीराम के दर्शन और परमानंद का लाभ अवश्य प्राप्त होता है।

1 टिप्पणी:

  1. बहुत ही अच्छी पोस्ट है, इसमें विभीषण जी का जिस तरह से उल्लेख किया गया है, वह सराहनीय है| यह बहुत शिक्षाप्रद है| Talented India News App

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