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शनिवार, 20 मई 2017

हम जानते है पर मानते नहीं!!

संसार का यह नियम है की जब तक किसी व्यक्ति या वस्तु के बारे में हम जान न ले उसके प्रति श्रद्धा उत्पन्न नहीं होती। गोस्वामीजी ने भी मानस में कहा है क़ि:-

"जाने बिनु न होई परतीती। बिनु परतीति होई नहिं प्रीती॥"

अब प्रश्न यह उठता है की क्या हम उस भगवान् के बारे में नहीं जानते? क्या हमें यह नहीं पता की भगवान् होते है? क्या हमें नहीं पता की भगवान् से ही यह सम्पूर्ण सृष्टि का सृजन, पालन और संहार होता है? क्या हम यह नहीं जानते की भगवान् हमारे ह्रदय में हमेशा निवास करते है? क्या हम नहीं जानते की भगवान् हमारे द्वारा किये गए प्रत्येक कर्मो को जानते है और उन कर्मो के हिसाब से फल प्रदान करते है?

ऐसे अनेक से प्रश्न है जिनके बारे में हम सभी प्रायः अपने माता-पिता, गुरुजनो, कथा वाचको, पुराणों, वेदों आदि के माध्यम से श्रवण मनन और चिंतन करके कुछ न कुछ हम समझते है, जानते है।

हम सभी किस न किसी प्रकार से भगवान् की भक्ति करते है पर चिंतन का विषय यह है की उस भक्ति का प्रयोजन क्या है? क्या हम यह भक्ति अपनी कामनाओ के पूर्ति के लिए करते है? अथवा भगवान् को प्राप्त करने के लिए? 

आहार निद्रा भय मैथुन ये सभी जीवो में होता है पर मनुष्य को भगवान् ने सोचने समझने की शक्ति प्रदान की है और हम उस शक्ति का प्रयोग कर उस भगवान् रुपी परामानंद को जानने का प्रयत्न कर सकते है अथवा यदि उस आनंद कन्द भगवान् की कृपा हम पर हो गई तो हम उसे जान भी सकते है। 

प्रायः हम सभी भगवान् के बारे में बहुत कुछ जानते है पर क्या हम भगवान् को मानते है? वस्तुतः यह प्रश्न बहुत जटिल है। नास्तिक व्यक्ति की पहचान करना बहुत आसान है पर आस्तिकता के पीछे जो नास्तिकता छुपी हुई है उसका पहचान कर पाना बहुत कठिन है। हम सभी वेदों, पुराणों, उपनिषदों, और एनी धार्मिक ग्रंथो में लिखी हुई बातो को समझते है, उन बातो को जानते है पर उस जानने का दायरा क्या है? क्या हम उसे एक सिद्धांत के रूप में जानते है अथवा उसे अपने व्यवहारिक जीवन में भी आत्मसात करते है। आज हमें कथाओ के माध्यम से हो अथवा रास्ते चलते ट्रेनों या बसो में हो बहुत से ऐसे लोग मिल जाएंगे जो आप को 10 मिनट में ज्ञान की बड़ी बड़ी बातें कर भगवान् से मिलाने का दावा कर दे। पर कभी वो ज्ञानी व्यक्ति स्वयं अपने व्यवहार जगत में उन सिद्धान्तों का पालन करते है अथवा नहीं। आज इस ब्लॉग के माध्यम से हम लोग भी आप तक कुछ न कुछ भगवत तत्व के बारे में पहुचाने का प्रयास करते है पर यह भी सत्य है की हम खुद भी अपने द्वारा कही गई सभी सैद्धांतिक बातो को अपने व्यवहारिक जगत में नहीं उतार पाते। कहने का तात्पर्य केवल इतना है की हम सभी सिद्धान्ततः तो बहुत कुछ जानते है की धर्म के अनुसार क्या अच्छा है और क्या बुरा है पर जब उसे मानने की पारी आती है तब हम उन धर्म-शस्त्रो में लिखी बात को न मान कर अपने मन के अनुसार चलने लगते है क्योकि मन हमारे कामनाओ को जो अनुकूल हो ऐसी बातें करता है अर्थात हमारा मन हमारे कामनाओ के वश में है और यह वही कार्य करता है जिससे हमारी कामनाये पुष्ट हो। भगवान् की भक्ति हो अथवा धर्म कर्म के प्रति श्रद्धा इन बातो का सैद्धांतिक ज्ञान के साथ साथ व्यवहारिक आचरण भी परम आवश्यक है। अतः आप अपने भगवान् धर्म आदि के बारे में जाने सुने सोचे मनन करे चिंतन करे लोगो को बताये उनको जागरूक करे सभी बाते बहुत अच्छी है पर इन बातो के साथ साथ उन बातो को अपनी व्यवहारिक जीवन में अवश्य उतारे तभी उसका परम लाभ मिल पायेगा वरना आप का किया गया सारा परिश्रम व्यर्थ है।

1 टिप्पणी:

  1. आपकी पोस्ट बहुत ही सराहनीय है, इससे लोगो को अपने आप को और भगवन को काफी नजदीक से जानने का मोइका मिलेगा | Talented India News App

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