गुरुवार, 13 अक्तूबर 2016

तुलसी कौन थी और तुलसी पूजा क्यों की जाती ?

हिन्दू मान्यता अनुसार घरो में पूजित तुलसी का असली नाम वृंदा था वृंदा का जन्म राक्षस कुल में होने के बाद भी वह अत्यंत ही धार्मिक प्रवत्ति की कन्या थी।कालांतर में वृंदा के बड़े होने पर उनका विवाह जालंधर नाम के एक राक्षसराज से हुआ जालंधर अत्यन्त बलशाली था और तुलसी भगवान विष्णु की परम भक्त थी।अपने पति के प्रति उसके सेवाभाव और पतिव्रता होने के कारण उनकी यश कीर्ति दूर दूर तक फैली हुई थी,पति के प्रति समर्पित होने के कारण ही महारानी वृंदा कालांतर में महासती वृंदा के नाम से विख्यात हुई।

जालंधर एक बलशाली राक्षस तो था ही पर उसके युद्ध में जाने पर विष्णु भक्त महारानी वृंदा पूजा और अनुष्ठान करती,जिसके कारण उसे हराना असंभव हो जाता।जालंधर के देवतो से युद्ध के समय महारानी वृंदा पूजा में बैठ गयी उनके तपोबल के कारण देवता जब हारने लगे तब भगवान विष्णु के पास सहायता मांगने पहुँचे।भगवान विष्णु ने देवताओं को बताया कि महारानी वृंदा के तप के कारण जालंधर को हराना संभव नही है।
भगवान देवताओं से बोले की वृंदा मेरी परम भक्त है और मै उससे छल नहीं कर सकता।देवताओं द्वारा बार बार धर्म की रक्षा का अनुरोध करने पर भगवान विवश होकर मान गए।

भगवान विष्णु ने राक्षसराज जालंधर का रूप धारण किया और जालंधर के महल में पहुँच गए उनको देख वृंदा को भ्रम हो गया कि जालंधर युद्ध से लौट आये है और उन्होंने जालंधर का रूप रखे हुए भगवन विष्णु के पैर छू लिए परपुरुष स्पर्श से जैसे ही उनका संकल्प टूटा उन्होंने देखा की असली जालंधर का सर कट कर उनके महल में आ गिरा।

अब वृंदा सब कुछ समझ गई थी पति का कटा सर देख वृंदा ने तपोबल से विष्णु को अपने असली स्वरुप में ला दिया उन्होंने भगवान विष्णु को पत्थर होने का श्राप दे दिया।सारे जगत के पालनहार के पत्थर बन जाने के कारण हाहाकार मच गया ,लक्ष्मी जी की प्रार्थना पर उन्होंने भगवान को शाप मुक्त कर दिया और अपने पति के साथ ही सती हो गयी।उनकी राख से एक पौधे का जन्म हुआ जिसे भगवान ने तुलसी कहा और यह भी कहा कि आज से मै पत्थर स्वरुप में मेरा एक रूप होगा जिसे शालिकराम नाम से जाना जायेगा साथ हि मेरा पत्थर स्वरुप तुलसी के साथ ही पूजित होगा बिना तुलसी मैं भोग प्रसाद स्वीकार नहीं करूँगा।

इस कारण तुलसी शालिकराम विवाह कार्तिक माह की एकादशी को किया जाता है जिसे देवउठनी एकादशी भी कहा जाता है। हिन्दू धर्म अनुसार समस्त।मांगलिक कार्य इसके बाद ही शुरू होते है।


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