गुरुवार, 18 मई 2017

जीव तीन तरह की तृष्णाओ से घिरा होता है!!

प्रत्येक जीव प्रायः तीन प्रकार की तृष्णाओ से घिरा होता है:-वित्तेषणा, पुत्रेष्णा, लोकेषणा।

वित्तेषणा का अर्थ है धन प्राप्ति की इच्छा। प्रत्येक मनुष्य अपने जीवनोपार्जन के लिए धन का अर्जन करने में लगा होता है। क्योकि कामनाये अनंत है और एक पूरी होने पर दूसरी कामना पैदा हो जाती है पर संतुष्टि नहीं मिलती। अतः जीव वित्तेषणा के पीछे अपना सारा जीवन बेकार कर जाता है। 

पुत्रेष्णा का अर्थ है पुत्र प्राप्ति की इच्छा। हर मनुष्य अपने वंश वृद्धि के लिए एक पुत्र प्राप्ति की इच्छा रखता है। यदि ना हो तो वह अपने को अभागा मानता है और सारा जीवन इसी ग्लानि में बीता देता है। जिन्हें पुत्र है वो सारा जीवन उसके लालन पालन और भरण पोषण की व्यवस्था में बीता देता है। यदि पुत्र किसी गलत आचरण में लिप्त हो गया तो जीवन आत्म ग्लानी में  बीता देता है।

लोकेषणा का अर्थ होता है प्रसिद्धि। जब मनुष्य के पार पर्याप्त धन सम्पदा आ जाती है और उसे कुछ भी पाना शेष नहीं होता है साथ ही पुत्र पौत्र से भी घर आनंदित होता है तब उसे तीसरे प्रकार की तृष्ण अर्थात लोकेषणा से ग्रसित हो जाता है। जब धन सम्पदा और पुत्र पौत्र से घर संपन्न हो जाता है तब उसे प्रसिद्धि की इच्छा होने लगती है की कैसे भी हो लोग उसे जाने। इसके लिए वह अनेक प्रकार के यत्न करता है क़ि कैसे भी हो उसका समाज में मान सम्मान बढे। फिर वह किसी के थोड़े से सम्मान से भी गर्व का अनुभव करता है और कोई ज़रा से कुछ गलत बोल दे तो अपना घोर अपमान समझता है।

इस प्रकार इन तीन तृष्णाओ से प्रत्येक मनुष्य घिरा होता है और भगवान् से विमुख होकर अपना जीवन व्यर्थ कर बैठता है।

1 टिप्पणी:

  1. आपके द्वारा दी गई जाकरी बहुत ही महत्वपुर्ण है | और मेरे द्वारा इसको अपने मित्रो और रिश्तेदारों को जरुर शेयर किया जायेगा | Talented India News App

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