यह संसार एक सनातन वृक्ष की भाँती है आइये जाने कैसे:-
इस वृक्ष का आश्रय क्या है--एक प्रकृति।
इसके दो फल है--सुख और दुःख।
इसके तीन जड़ है--सत्त्व, रज और तम।
इसके चार रास है--धर्म, अर्थ, काम और मोक्ष।
इसको जानने के पांच प्रकार है--श्रोत्र (आँख), त्वचा, नेत्र, रसना (जिव्हा) और नासिका।
इसके छः स्वभाव है--पैदा होना, रहना, बढ़ना, बदलना, घटना और नष्ट हो जाना।
सात धातुवे इसकी छाल है--रस, रुधिर, मांस, मेद, अस्थि, मज्जा और शुक्र।
इसकी आठ शाखाएँ है--क्षितिज, जल, पावक, गगन, समीर, मन, बुद्धि और अहंकार।
इसके मुख आदि नवों द्वार खोडर है।
दस प्राण ही इसके पत्ते है--प्राण, अपान, व्यान, उदान, समान, नाग, कूर्म, कृकल, देवदत्त, और धनञ्जय।
इस संसार रुपी वृक्ष पर दो पक्षी जीवात्मा और ईश्वर नित्य विचरण करते है।
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