शनिवार, 8 अप्रैल 2017

जानिये कैसे हनुमानजी से हार गए श्रीराम!!

वंदना:-

"पवन तनय संकट हरण, मंगल मूरति रूप।
राम लखन सीता सहित, ह्रदय बसहुँ सुरभूप।।"

श्रीराम की सभा:- उत्तर रामायण के अनुसार जब श्रीराम ने अश्वमेघ यज्ञ पूर्ण किया तब उन्होंने एक भव्य सभा का आयोजन किया जिसमे देवताओ ऋषि-मुनियो और राजाओ सहित समस्त प्रजा जानो को निमंत्रण दिया गया। सभा में नारद,वशिष्ट, विश्वामित्र सहित सभी ऋषिगण आये।

विश्वामित्र का अपमान और उनका क्रोध:- नारद जी के कहने पर वहा आये एक राजा ने विश्वामित्र जी को छोड़ कर बाकी सभी को प्रणाम किया। इस बात पर ऋषि विश्वामित्र ने अपना अपमान समझा और उस राजा पर क्रुद्ध हो गए। महर्षि को क्रुद्ध हुआ जानकार राजा अपने प्राण को बचा कर वहा से भाग गया। 

श्रीराम की प्रतिज्ञा:- क्योकि सभा का आयोजन श्रीराम ने किया था अतः विश्वामित्र ने रामजी से कहा की तुम्हारे सभा में मेरा अपमान हुआ है अतः तुम्हे ही मेरे अपमान का बदला लेना होगा।

 ऐसा कह कर विश्वामित्र ने श्रीराम से कहा की आज सूर्यास्त के पहले मुझे उस राजा का मस्तक लाकर दो वरना मै तुम्हे श्राप दे दूंगा। श्रीराम ने भी प्रतिज्ञा कर ली की आज ही उस राजा का मस्तक काट कर सूर्यास्त के पहले आपके चरणों में डाल दूंगा।

राजा का भय:- इस प्रकार जब उस राजा को श्रीराम के इस प्रतिज्ञा का पता चला तब वह अत्यंत भयाक्रांत हो गया और विविध प्रकार से कैसे प्राण रक्षा हो इस बात का चिंतन करने लगा। 

नारद जी की युक्ति:- इतने में नारद जी उसके पास पहुच गए और उसे एक युक्ति बताई क़ि तुम जाकर माता अंजना की शरण लो और हनुमान जी से अपनी प्राण रक्षा का वचन लो। 

माता अंजना का राजा की रक्षा के लिए वचन:- राजा ने नारद जी की बात मानकर माता अंजना के पास पहुच गए और उन्हें बिना सम्पूर्ण वृत्तांत बताये बस यह कह कर की मुझे एक राजा से प्राण जाने का खतरा है आप मेरी सहायता कीजिये, ऐसा कहकर अपनी प्राण रक्षा हनुमानजी से कराने का वचन ले लिया।

हनुमान जी का आगमन:- जब माता अंजना ने यह वचन दिया तब वचन पूर्ति के लिए उन्होंने हनुमान को याद किया और हनुमानजी वहा प्रकट हो गए। हनुमानजी को माता अंजना ने कहा की यह राजा भयाक्रांत है किसी ने इसे आज सूर्यास्त के पहले मारने का प्रण किया है और मैंने इसकी प्राणरक्षा का वचन दिया है अतः तुम्हे मेरी वचन रक्षा के लिए इसके प्राण बचाने होंगे।

हनुमान जी का वचन:- हनुमानजी को तब कुछ भी पता नहीं था उन्होंने अपनी माँ से कहा कि हे माता आपकी वचन रक्षा के लिए मै इस राजा की रक्षा करूँगा और संसार में कोई भी इसका शत्रु हो इसका वध नहीं कर पायेगा। ऐसा कहकर हनुमानजी और वह राजा वहा से चले गए।

हनुमानजी की दुविधा:- आगे हनुमानजी ने जब उस राजा से पूछा की तुम्हे मारने का प्राण आखिर किसने और किस कारण लिया है। तब राजा ने श्रीराम की सभा का सारा वृत्तांत कहा।

जब हनुमानजी ने यह सूना की श्रीराम ने इसे मारने का प्राण लिया है तब वे बड़े धर्म संकट में पड़ गए की आज माता की वचन की रक्षा के लिए मुझे अपने प्रभु श्रीराम से युद्ध करना होगा। अब एक तरफ माता का वचन दूसरी तरफ प्रभु से युद्ध और प्रभु श्रीराम की श्राप से रक्षा हनुमानजी आज चक्कर में पड़ गए।

हनुमान जी की कुशल युक्ति:- फिर हनुमानजी ने एक युक्ति सोची की श्रीराम से युद्ध में तो तीनो लोक में कोई नहीं जीत सकता। परंतु श्रीराम से बड़ी कोई शक्ति है तो वह है श्रीराम का नाम। अतः हनुमानजी ने श्रीराम नाम का आश्रय लेने की सोची। 

राजा द्वारा राम नाम का जाप:- हनुमानजी उस राजा को लेकर सरयू नदी के पावन तट पर आ गए।  वहा एक टिले पर उन्होंने उस राजा को बैठा दिया और राम नाम जपने को बोले। राजा जय जय राम जय श्रीराम नाम का जाप करने लगा। हनुमानजी स्वयं उस टिले के पीछे शुक्ष्म रूप बनाकर छुप कर राम नाम का जाप करने लगे।

श्रीराम का राजा के पास युद्ध को आना:- श्रीराम उस राजा को ढूंढते हुए जब सरयू तट पर पहुचे तब उन्होंने देखा की वह राजा राम नाम का जप कर रहा है और राम नाम के जप करने वाले भक्त का मै कैसे वध करू यह सोच कर वे वापस महल लौट गए फिर विश्वामित्र जी ने  उन्हें श्राप देने की बात कही तो पुनः श्रीराम सरयू तट वापस आ गए।

शक्ति बाण का प्रयोग:- इस बार श्रीराम ने शक्ति बाण का संधान किया। पर राम नाम का आश्रय लिए हुए मनुष्य पर कोई शक्ति काम नहीं करती। शक्त्ति बाण विफल हो कर वापस आ गया। शक्ति बाण को विफल हुआ देख फिर से श्रीराम विश्वामित्र के पास गए और प्रार्थना की के उस राजा को क्षमा कर दे पर विश्वामित्र जी ने पुनः क्रोध से श्राप देने की बात कही और श्रीराम फिर से सरयू तट पर आ गए।

रामबाण का प्रयोग:- इस बार हनुमान जी ने राम नाम के साथ साथ जय सियाराम और जय हनुमान का भी जाप करने उस राजा को कहा। उस राजा ने श्रीराम,  सीताराम, जय हनुमान का जप प्रारम्भ कर दिया। 

इस बार श्रीराम ने देखा की यह तो भगवान् के नाम के साथ शक्ति (सीता) और भक्ति (हनुमान) का भी नाम ले रहा है ऐसे में इसका वध कैसे हो तब उन्होंने रामबाण का प्रयोग किया पर रामजी के नाम के आगे रामबाण भी कुछ नहीं कर पाया। अंत में श्रीराम मूर्छित हो गए।

वशिष्ठ जी का विश्वामित्र को समझाना:- जब यह सारा वृत्तांत वशिष्ट जी को पता चला तब उन्होंने विश्वामित्र जी को समझाया की आप श्रीराम को इस प्रकार से धर्म संकट में न डाले। श्रीराम चाह कर भी राम नाम जपने वाले को नहीं मार सकते क्योकि राम से बड़ा राम का नाम है। अतः आप अपना क्रोध शांत करे और उस राजा के धृष्टता को क्षमा करे।

विश्वामित्र का श्रीराम को वचन से मुक्त करना:- वशिष्ठ जी के समझाने पर विश्वामित्र जी मान गए और उस राजा को क्षमा कर श्रीराम को अपने वचन से मुक्त कर दिया।

श्रीराम को चेतना:- श्रीराम मूर्छित अवस्था में सरयू जी के किनारे पड़े हुए थे हनुमान जी ने जब यह देखा तो तुरंत वहा आ कर उन्हें सम्हाला इतने में वशिष्ट जी विश्वामित्र जी भी वहा पर आ गए। कुछ समय बाद श्रीराम को चेतना आई। तब विश्वामित्र ने उन्हें बताया की मैंने तुम्हे अपने वचन से मुक्त कर दिया है। तब श्रीराम अत्यंत प्रसन्न हुए।

श्रीराम-हनुमान संवाद:- इतने में जब हनुमान जी पर श्रीराम की नजर पडी तब श्रीराम को समझ आ गया की यह सारा कुछ हनुमान का ही किया हुआ है और हनुमान जी से पूछे- हनुमान तुम इस राजा की रक्षा के लिए मेरे विरुद्ध कैसे हो गए। 

हनुमानजी ने कहा हे प्रभु मै आप के विरुद्ध स्वप्न में भी नहीं हो सकता इस राजा ने छल से मेरी माता से अपने प्राण रक्षा का वचन ले लिया अतः माता के वचन रक्षा के लिए मुझे इसका साथ देना पड़ा। 

आप से युद्ध में जीतने का साहस तो ब्रह्मा विष्णु महेश आदि किसी में नहीं है। फिर मै आपसे कैसे युद्ध कर सकता हूँ। आप को केवल भक्ति से ही जीता जा सकता है अतः मैने इस राजा को केवल आपकी भक्ति करने का साधन बताया। मेरी क्या शक्ति है की मै आपसे इसकी रक्षा करता। आपसे इसकी रक्षा तो स्वयं आपने ही की है। 

आपके नाम स्मरण से ही इसकी रक्षा हो सकी है। आज एक बात और प्रमाणित हो गई प्रभु की आप से बड़ा आप का नाम है की जिसके जाप से स्वयं रामबाण विफल हो जाता है।

उपसंहार:- धन्य है रामजी जो अपने भक्त हनुमान के विशवास की रक्षा के लिए सर्व समर्थ होते हुए भी अपने को असहाय कर लिये और धन्य है हनुमानजी जिन्होंने अपनी बुद्धि से अपने प्रभु श्रीराम माता अंजना और उस राजा सभी के मान की रक्षा की। इस कथा के माध्यम से श्रीराम मानो अपने भक्तो की महिमा बताना चाहते है। यह बताना चाहते है की मै अपने भक्तो के पराधीन हूँ।

"जिस समुद्र को बिना सेतु के लांघ सके ना राम।
लांघ गए हनुमानजी उसको लेकर राम का नाम।
तो इस दृष्टान्त का निकला ये परिणाम।
राम से बड़ा राम का नाम।।"

                ।।जय श्रीराम।।
              ।। जय हनुमान।।

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