भगवान् परशुराम के प्रमुख शिष्यो में एक शिष्य हुए महाभारत काल के द्रोणाचार्य। द्रोणाचार्य का जन्म अत्यंत गरीब ब्राह्मण परिवार में हुआ था। उन्होंने अस्त्र शस्त्रो और वेद आदि का ज्ञान भगवान् परशुराम से प्राप्त किया था। एक बार की बात है भगवान् परशुराम ब्राह्मणों को धरती की सम्पदा दान दे कर महेन्द्रगिरि पर तपस्या कर रहे थे।
द्रोणाचार्य ने जब जाना की भगवान् परशुराम ने ब्राह्मणों को सारी धरती का दान किया है तब वे भी याचना ले कर भगवान् परशुराम के पास पहुच गए और उनसे याचना करने लगे। भगवान् परशुराम अपना सब कुछ पहले ही ब्राह्मणों को दान दे चुके थे। अतः भगवान् परशुराम ने द्रोणाचार्य से कहा की तुमने आने में देर कर दी मै ने पहले ही अपना सब कुछ ब्राह्मणों को दान कर दिया है अब मेरे पास मेरे ज्ञान के अतिरिक्त कुछ भी शेष नहीं है।
द्रोणाचार्य ने कहा की मुझे लौकिक सम्पदा नहीं चाहिए आप मुझे अपने सारे दिव्यास्त्रों का दान कर दीजिये। द्रोणाचार्य ने कहा की आपके पास जितने भी दिव्यास्त्र है आप उन सभी को मुझे प्रदान किजीई साथ ही उनके संधान और उपसंहार की विधि भी बताइये और अपना शिष्य बना कर सारी विद्याएँ प्रदान कीजिये।
भगवान् परशुराम ने याचक के याचना अनुसार अपने सारे दिव्यास्त्र जो उन्होंने भगवान् शंकर से प्राप्त किये थे द्रोणाचार्य को दान कर दिए। इसप्रकार द्रोणाचार्य जो कि एक याचक बन कर भगवान् परशुराम के पास दिव्यास्त्रों भी भिक्षा माँगने पहुचे और भगवान् परशुराम ने उन्हें सारी विद्याएँ और दिव्यास्त्र प्रदान किये जिसे उन्होंने कालान्तर में अपने प्रिय शिष्य अर्जुन और अन्य कौरवो-पांडवो को प्रदान किया।
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जय परशुराम।।
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