शिव पुराण के अनुसार भगवान शिव के 11 रुद्र अवतार हुए हैं। इनकी उत्पत्ति की कथा इस प्रकार है-
एक बार देवताओं और दानवों में युद्ध छिड़ गया। इसमें दानव जीत गए और उन्होंने देवताओं को स्वर्ग से बाहर निकाल स्वर्ग पर अपना अधिकार कर लिया, हारे हुए सभी देवता बड़े दु:खी मन से अपने पिता कश्यप मुनि के पास गए। उन्होंने पिता को अपने दु:ख का कारण बताया और उनसे अपना राज पाठ वापस दिलाने के लिए प्रार्थना की। कश्यप मुनि परम शिवभक्त थे। उन्होंने अपने पुत्रों को आश्वासन दिया और काशी जाकर भगवान शिव की पूजा-अर्चना शुरु कर दी। उनकी प्रगाण भक्ति देखकर भगवान भोलेनाथ अत्यंत प्रसन्न हुए और दर्शन देकर वर मांगने को कहा।
कश्यप मुनि ने देवताओं की भलाई के लिए उनके यहां पुत्र रूप में आने का वरदान मांगा। भगवान शिव ने कश्यप को वर दिया और वे उनकी पत्नी सुरभि के गर्भ से ग्यारह रुपों में प्रकट हुए। यही ग्यारह अवतार रुद्र कहलाए। ये देवताओं के शोक के निवारण के लिए प्रकट हुए थे इसीलिए इन्होंने देवताओं को पुन: स्वर्ग का राज दिलाया। धर्म शास्त्रों के अनुसार यह ग्यारह रुद्र सदैव देवताओं की रक्षा के लिए स्वर्ग में ही रहते हैं।
ग्यारह रुद्रों के नाम इसप्रकार हैं-
1- कपाली
कश्यप मुनि ने देवताओं की भलाई के लिए उनके यहां पुत्र रूप में आने का वरदान मांगा। भगवान शिव ने कश्यप को वर दिया और वे उनकी पत्नी सुरभि के गर्भ से ग्यारह रुपों में प्रकट हुए। यही ग्यारह अवतार रुद्र कहलाए। ये देवताओं के शोक के निवारण के लिए प्रकट हुए थे इसीलिए इन्होंने देवताओं को पुन: स्वर्ग का राज दिलाया। धर्म शास्त्रों के अनुसार यह ग्यारह रुद्र सदैव देवताओं की रक्षा के लिए स्वर्ग में ही रहते हैं।
ग्यारह रुद्रों के नाम इसप्रकार हैं-
1- कपाली
2- पिंगल
3- भीम
4- विरुपाक्ष
5- विलोहित
6- शास्ता
7- अजपाद
8- अहिर्बुधन्य
9- शंभु
10- चण्ड
11- भव
बहुत ही सटीक जानकारी दी आपने,यह पोस्ट सभी के लिए बहुत ही ज्ञान वाली है और शिव पूरण में रूद्र का क्या महत्व है यह इसमें बहुत ही अच्छे तरीके से समझाया गया है|
जवाब देंहटाएंTalented India News App
जय सनातन हिन्दू धर्म , विश्व में भारत और धर्म में हिन्दू सबसे ऊपर है .
जवाब देंहटाएं