रविवार, 14 जनवरी 2018

बाल्यकाल में एक मदारी ने कराई थी हनुमानजी की श्रीराम से भेंट!!


हम सभी जानते है कि हनुमानजी श्रीराम के अनन्य भक्त है और मानस के अनुसार उनकी प्रथम भेंट ऋषिमुख पर्वत पर हुई थी। परंतु एक कथा और भी प्रचलित है जिसमे श्रीराम और हनुमान बाल्यकाल में भी कुछ समय साथ मे व्यतीत किये है।

एक बार की बात है, श्रीहनुमान जी के मन मे, जो कि साक्षात रुद्र के अवतार है, बाल्यकाल में श्रीराम से मिलने की उत्कट उत्कंठा हुई। उन्होंने अपनी माँ अंजनी से कहा तो माता ने शिव जी की आराधना करने को कहा। हनुमान जी तुरंत शिवलिंग का निर्माण कर श्रद्धा भाव से उनके भजन पूजन में लग गए। उधर शिवजी ने देखा कि हनुमान श्रीराम से मिलने की कामना लिए मेरी भक्ति कर रहा है, तो शिवजी हनुमान के सामने प्रकट हुए और बालक हनुमान से कहने लगे कि- कहो वत्स तुम किस कामना को मन मे लिए मेरी भक्ति कर रहे हो। हनुमानजी ने शिवजी को प्रणाम कर श्रीराम से मिलने की अपनी इच्छा प्रकट की। तब शिवजी ने कहा कि एक उपाय है जिससे हम दोनों उनके बाल स्वरूप के दर्शन कर सकते है। हनुमानजी ने कहा कि बताइये प्रभु मैं कैसे उनसे मिल सकता हूँ। 

तब शिवजी ने कहा कि तुमने वानर के रूप में अवतार लिया है तो वानर रूप में ही उनके पास चलो और मैं तुम्हे नचाने वाला मदारी बन कर उनके पास ले जाऊंगा। तब शिवजी डमरू बजाते हुए एक मदारी का वेश बनाकर हनुमान जी को नचाते हुए अयोध्या ले गए और दशरथ जी के महल के सामने जोर जोर से डमरू बजाने लगे। उधर श्रीराम ने जब देखा कि उनके प्रभु शिवजी स्वयं उनसे मिलने के लिए एक मदारी बनकर आये है और साथ मे उनके परम भक्त हनुमानजी को भी साथ लेकर आये है, तब उन्होंने माता कौशल्या से उस मदारी का खेल देखने की इच्छा व्यक्त की। माता ने अनुमति दे दी और चारो भाई मदारी का खेल देखने महल के बाहर आ गए। अब शिवजी डमरू बजाते और हनुमानजी अन्य वानरो की भांति नृत्य करते। इसप्रकार श्रीराम और हनुमान जी की भेंट शिवजी ने बाल्यकाल में ही करा दी थी।

जब खेल समाप्त हुआ और मदारी बने शिवजी हनुमानजी को लेकर अयोध्या से वापस हुए, तब श्रीराम उदास हो गए और भोजन का त्याग कर दिया, माता कौशल्या को जब यह बात पता चली तब उन्होंने राज वैद्य को बुलवाया पर वैध के पल्ले भी कुछ बात नही पड़ी और रामजी उदास के उदास ही बने रहे। फिर माता कौशल्या ने श्रीराम से उनकी उदासी का कारण पूछा तब उन्होंने कहा कि मुझे एक बन्दर चाहिए। माता ने तुरंत सेवकों को आज्ञा दी सेवको ने बहुत सारे वानर ला दिए, पर श्रीराम किसी भी वानर को देख कर प्रसन्न नही हुए। अंत मे जब यह बात वशिष्ठ जी को पता चली, तो उन्होंने अपने योग के प्रभाव से ध्यान लगाकर सब बात जान लिया और सेवको को आज्ञा दी कि किष्किंधा में जाकर अंजनी के पुत्र को ले आओ तो राम के शोक का निवारण हो जाएगा। तब सेवको ने जाकर हनुमान जी को लाया और श्रीराम का शोक दूर हुआ। इस प्रकार हनुमान जी बाल्यकाल में कुछ समय तक श्रीराम के साथ अयोध्या में ही निवास किये और विविध लीलाएं की। 

1 टिप्पणी:

  1. बहुत ही सुन्दर कथा है ये, प्रभि श्री राम और हनुमान जी की मित्रता को यह संसार कभी नहीं भूल सकता है| Talented India News App

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