स्वयं सिद्ध मुहूर्त
हमारे सनातन हिन्दू धर्म में मुहूर्त का विशेष महत्व है। हमारे यहाँ कोई भी शुभ कार्य करने से पहले मुहूर्त विचार अवश्य किया जाता है। इसी क्रम में आइये जाने किन तिथियों में मुहूर्त विचार करने की आवश्यकता नहीं है। इन तिथियों को स्वयं सिद्ध मुहूर्त कहा जाता है:-
1 चैत्र शुक्ल प्रतिपदा (नव वर्ष आरम्भ)
2 चैत्र शुक्ल नवमी (राम नवमी)
3 वैशाख शुक्ल तृतीया (अक्षय तृतीया)
4 आषाढ़ शुक्ल द्वतीया (रथ यात्रा)
5 आषाढ़ शुक्ल नवमी (भड्डली नवमी)
6 आसोज शुक्ल दशमी (विजय दशमी)
7 कार्तिक शुक्ल प्रतिपदा (अन्नकूट)
8 कार्तिक शुक्ल एकादशी (देवोत्थानी एकादशी)
9 कार्तिक अमावश्या (दीपावली)
10 माघ शुक्ल पंचमी (बसंत पंचमी)
11 फाल्गुन शुक्ल द्वतीया (फुलेरा दूज)
हमारे सनातन हिन्दू धर्म में मुहूर्त का विशेष महत्व है। हमारे यहाँ कोई भी शुभ कार्य करने से पहले मुहूर्त विचार अवश्य किया जाता है। इसी क्रम में आइये जाने किन तिथियों में मुहूर्त विचार करने की आवश्यकता नहीं है। इन तिथियों को स्वयं सिद्ध मुहूर्त कहा जाता है:-
1 चैत्र शुक्ल प्रतिपदा (नव वर्ष आरम्भ)
2 चैत्र शुक्ल नवमी (राम नवमी)
3 वैशाख शुक्ल तृतीया (अक्षय तृतीया)
4 आषाढ़ शुक्ल द्वतीया (रथ यात्रा)
5 आषाढ़ शुक्ल नवमी (भड्डली नवमी)
6 आसोज शुक्ल दशमी (विजय दशमी)
7 कार्तिक शुक्ल प्रतिपदा (अन्नकूट)
8 कार्तिक शुक्ल एकादशी (देवोत्थानी एकादशी)
9 कार्तिक अमावश्या (दीपावली)
10 माघ शुक्ल पंचमी (बसंत पंचमी)
11 फाल्गुन शुक्ल द्वतीया (फुलेरा दूज)
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मतलब इन तिथियों में हमें पंडित जी के पास मुहूर्त विचार के लिए जाने की आवश्यकता नहीं है !!!
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