मंगलवार, 13 दिसंबर 2016

दन्तधावन (मंजन या दातौन) करने के नियम व निषेध!!


मुख शुद्धि के बिना पाठ-पूजा, मंत्र-जप आदि निष्फल होते है, अतः प्रतिदिन मुख शुद्धि के लिए दन्त धावन अथवा मंजन आदि अवश्य करना चाहिए।

दातौन करने के लिए दो दिशाए निर्धारित है- ईशान और पूरब। अतः इन्ही दिशाओ में बैठ कर दातौन करना चाहिए।

ब्राह्मण के लिए बारह अंगुल का, क्षत्रिय के लिए नव अंगुल का, वैश्य के लिए छः अंगुल का और शुद्र के लिए तथा स्त्रियों के लिए चार-चार अंगुल का दातौन होना चाहिए।

दातौन लगभग कनिष्ठिका के सामान मोटी हो। एक सिरे को कुँच कर कूँची बना लेना चाहिए। दातौन करते समय हाथ घुटनो के भीतर हो। दातौन को धो कर उपयोग करना चाहिए।

इसके बाद मौन हो कर मसूड़ों को बिना चोट पहुचाये दातौन करे। दांतो की अच्छी तरह सफाई हो जाने के बाद दातौन तोड़ कर और धो कर नैऋत्य कोण में फेकना चाहिए।

ग्राह्य दातौन:- चिड़चिड़ा, गूलर, आम, बेर, कुरैया, कंजर, खैर आदि दातौन अछि मानी जाती है।

निषिद्ध दातौन:- पलास, कपास, नील, धव, कुश, काश आदि दातौन वर्जित है।

निषिद्ध काल:- प्रतिपदा, षष्ठी, अष्टमी, नवमी, चतुर्दशी, अमावश्या, पूर्णिमा, संक्रांति, जन्मदिन, विवाह, उपवास, व्रत, रविवार, और श्राद्ध के दिन दातौन नहीं करना चाहिए। रजस्वला और प्रसूति के अवस्था में भी दातौन नहीं करना चाहिए।

निषिद्ध काल में दन्त धावन:- जिन जिन काल में दातौन करना निषिद्ध है उन अवसरों में उन वृक्ष के पत्तो से या सुगन्धित मंजन से दन्त धावन करना चाहिए। मंजन अनामिका अथवा अंगूठे से लगाना उत्तम है। अन्य दो उंगलियो से भी मंजन किया जा सकता है पर तर्जनी से करना सर्वथा निषिद्ध है। दातौन के समय यदि शिखा खुल जाय तो गायत्री मंत्र से बांध लेनी चाहिए।

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