नवरात्र में नवकन्या पुजन- नवरात्र में नव दिनों तक हम देवी भगवती की आराधना करते है। नवरात्र के नव दिनों में कन्या पूजन का विधान श्रीमद्देवीभागवत में बताया गया है। प्रातः ब्रह्म मुहूर्त में उठ कर माता की सेवा प्रारम्भ कर देनी चाहिए। प्रतिदिन भाँति भाँति के मनोहर द्रव्यों से प्रातः, मध्यान्ह और सांध्य तीनो समयो में भगवती की पूजा करनी चाहिए। गाकर, बजाकर और नाचकर बड़े ही समारोह पूर्वक उत्सव के साथ इस पर्व को मनाना चाहिए। भूमि पर सोना चाहिए। सारे व्यसनों का त्याग करना चाहिए।परनिंदा नहीं करनी चाहिए। दिव्य वस्त्र आभूषण अमृत के सामान मधुर भोजन आदि से कन्याओ की पूजा करनी चाहिए।
विधान- पहले दिन एक कन्या की पूजा करनी चाहिए। फिर प्रतिदिन क्रमशः एक एक कन्या बढ़ाते जाना चाहिए। इस प्रकार नवे दिन नव कन्याओ का पूजन करना चाहिए। पूजन की विधि में एक वर्ष की कन्या नहीं लेनी चाहिए, क्योकि गन्ध और भोग आदि पदार्थो से वह अनभिज्ञ रहती है। कुमारी वही कहलाती है जो कम से कम दो वर्ष की अवस्था पूर्ण कर चुकी हो साथ ही दस वर्ष से अधिक अवस्था वाली कन्याओ को पूजन में नहीं लेना चाहिए।
नवरात्र में प्रतिदिन अलग अलग कन्याओ के पूजन का विधान है। इनके नवो नामो का विधि पूर्वक ध्यान करना चाहिए। इन नवों कन्याओ के नाम और उनके पूजन का फल बताया गया है:-
1. कुमारी- दो वर्ष की अवस्था वाली कन्या को "कुमारी" कहा जाता है। दुःख और दरिद्रता के शमन के लिए कुमारी का पूजन करना चाहिए। इस पूजन से शत्रु का शमन और धन आयु एवं बल की प्राप्ति होती है।
2. त्रिमूर्ति- तीन वर्ष की कन्या को "त्रिमूर्ति" कहा जाता है। भगवती त्रिमूर्ति की पूजा से त्रिवर्ग अर्थात धर्म, अर्थ और काम की सिद्धि मिलती है। साथ ही साथ धन-धान्य का आगमन एवं पुत्र-पौत्रों का संवर्धन भी होता है।
3. कल्याणी- चार वर्ष की अवस्था वाली कन्या को "कल्याणी" कहते है। जिसको विद्या, विजय, राज्य एवं सुख पाने की अभिलाषा हो वह सम्पूर्ण कामना पूर्ण करने वाली भगवती कल्याणी का निरंतर पूजन करे।
4. रोहिणी- पांच वर्ष की अवस्था वाली कन्या को "रोहिणी" कहा जाता है।मानव रोग के नाश के लिए रोहिणी की निरंतर पूजन करना चाहिए।
5. कालिका- छः वर्ष की अवस्था वाली कन्या को "कालिका" कहते है।शत्रु का शमन करने के लिए भगवती कालिका की भक्ति पूर्वक आराधना करनी चाहिए।
6. चण्डिका- सात वर्ष की अवस्था वाली कन्या को "चण्डिका" कहते है। भगवती चण्डिका के पूजन से ऐश्वर्य एवं धन की प्राप्ति होती है।
7. शाम्भवी- आठ वर्ष की अवस्था वाली कन्या को "शाम्भवी" कहते है। किसी को मोहित करने, दुःख दरिद्रता को हटाने और संग्राम में विजय पाने के लिए भगवती शाम्भवी का पूजन करना चाहिए।
8. दुर्गा- नव वर्ष की अवस्था वाली कन्या को "दुर्गा" कहते है। किसी कठिन कार्य को सिद्ध करने और दुष्टो के संघार के लिए भगवती दुर्गा का पूजन करना चाहिए। इनकी पूजन करने से पारलौकिक सुख भी सुलभ होता है।
9. सुभद्रा- दस वर्ष की अवस्था वाली कन्या को "सुभद्रा" कहते है। मनोरथ की सिद्धि के लिए भगवती सुभद्रा की उपासना होनी चाहिए।
इस प्रकार नियम पूर्वक व्रत लेकर नव दिनों तक सम्पूर्ण समर्पण के साथ भगवती स्वरूपा नव कन्याओ का पूजन करने से भुक्ति-मुक्ति प्राप्त होती है।
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