शनिवार, 1 अप्रैल 2017

जानिये कब श्रीराम ने की थी नवरात्र में शक्ति की उपासना!!

श्रीराम का शोक- श्रीमद्देवीभागवत पुराण अनुसार रामायण काल में जब श्रीराम को वनवास हुआ तब उनके साथ उनके छोटे भाई लक्ष्मण और माता जानकी भी वन को गए। वनवास के समय लंका के राजा रावण ने छल पूर्वक जानकी का हरण कर लिया। जानकी के हरण हो जाने के बाद श्रीराम अत्यंत विरहाकुल हो गए। विरह की अवस्था ऐसी थी की उन्हें जड़-चेतन का भी भान नहीं रहा और वृक्ष, लता, पशु, पक्षी आदि से जानकी का पता पूछते हुए वन वन भटकने लगे। लक्ष्मण उन्हें समझाते पर लक्ष्मण के प्रति वात्सल्य भाव होने के कारण उनका शोक दूर नहीं होता था। 

नारदजी द्वारा श्रीराम को नवरात्र व्रत का विस्तार- एक दिन दोनों भाई जानकी की खोज करते हुए जा रहे थे तभी वहा से देवर्षि नारद गुजरे। उन्होंने जब देखा की तीन लोक के स्वामी की यह कैसी दशा है की अपनी पत्नी के लिए वन वन भटकना पड़ रहा है। नारद जी दोनों भाइयो के पास पहुचे और उनके विरह का कारण पूछा तब श्रीराम ने सारा वृत्तांत नारद जी को सुनाया। तब नारद जी ने श्रीराम को देवी भगवती के दिव्य नवरात्र व्रत के विधान के बारे में सविस्तार बताया और उनसे इस व्रत को करने के लिए कहा। 

श्रीराम ने नारद जी की बात मान कर शारदेय नवरात्र में नव दिन का व्रत अनुष्ठान पूर्वक किया। नवरात्र व्रत की पूर्णाहुति होते ही देवी भगवती ने श्रीराम को साक्षात दर्शन दिए और उन्होंने श्रीराम को उनके वास्तविक स्वरुप का बोध कराया की वे विष्णु के अंश से इस धरा धाम में दुष्टो के विनाश के लिए अवतार धारण किये है। देवी भगवती ने उन्हें उनके पूर्व के अवतारो की कथा सुनाई। 

देवी का श्रीराम को आशिर्वाद-  अंत में देवी ने श्रीराम को विजयश्री का आशीर्वाद दिया और कहा की शीघ्र ही तुम्हे जानकी प्राप्त होगी तुम वानर और भालुओं की सेना एकत्रित करो और जानकी का अनुसंधान करो। तुम्हारे द्वारा रावण कुम्भकर्ण आदि राक्षसो का वध होगा और सीता तुम्हे पुनः प्राप्त होगी। फिर तुम इस धारा धाम पर रामराज्य की स्थापना कर ग्यारह हजार वर्षो तक राज्य करना और उसके बाद अपने परमधाम को प्राप्त करना। ऐसा कहकर देवी भगवती अंतर्ध्यान हो गई। 

देवी के वचनानुसार श्रीराम का मोह समाप्त हो गया और आगे चल कर हनुमान की सहायता से सुग्रीव, जामवंत आदि से मित्रता कर सीता की खोज की और सेतु बना कर लंका तक पहुचे। रावण, कुम्भकर्ण, मेघनाद आदि राक्षसो का वध कर जानकी को प्राप्त किया और अयोध्या जाकर वहां राम राज्य की स्थापना की। इस प्रकार देवी भगवती की नवरात्र व्रत के अनुष्ठान से श्रीराम ने अपने सभी अभीष्ट को प्राप्त किया।

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