मंगलवार, 11 अप्रैल 2017

हनुमानजी का जन्म (प्राकट्य) कैसे, कब और कहाँ हुआ!!

वंदना:-

"अतुलितबलधामं हेमशैलाभदेहं
दनुजवनकृशानुं ज्ञानिनामग्रगण्यम् ।
सकलगुणनिधानं वानराणामधीशं
रघुपतिप्रियभक्तं वातात्मजं नमामि ॥"


"प्रनवउँ पवनकुमार खल बन पावक ज्ञानघन |
जासु हृदय आगार बसहिं राम सर चाप धर ||"

अवतार का प्रयोजन:- हनुमानजी भगवान् शंकरजी के अंशावतार है। रामजी को शंकरजी अत्यंत प्रिय है और शंकरजी को रामजी अतः जब भगवान् श्रीहरि नारायण ने रामावतार लिया तब हनुमानजी के रूप में भगवान् शंकर ने अवतार लिया ताकि वे उनके कार्यो की सिद्धि कर सके। मानस में भी तुलसीदास जी ने जामवंत जी से कहलवाया है:-

"राम काज लगि तव अवतारा।"

श्रीराम के कार्य करने के लिए ही हनुमानजी का अवतार हुआ। विनय पत्रिका में भी गोस्वामी जी ने हनुमानजी की स्तुति में रूद्र अवतार होने और रघुवीर के हित करने अवतार धारण करने की बात कही है:-

"जयति रणधीर, रघुवीरहित, देवमणि, रूद्र-अवतार, संसार-पाता। "

हनुमान चालीसा में भी तुलसीदासजी ने कहा है

"सब पर राम तपस्वी राजा,
तिन के काज सकल तुम साजा।"

हनुमान जी श्रीराम के सकल अर्थात सभी कार्यो को सिद्ध किये है। 

हनुमानजी की जन्म तिथि:- सर्व प्रचलित मान्यता के अनुसार हनुमान जी का जन्म चैत्र पूर्णिमा को चित्रा नक्षत्र में मेष लग्न में मंगलवार को प्रातः 6:00 बजे हुआ। 
"मंगल को जनमे, मंगल ही करते, मंगलमय भगवान्।।"

हनुमानजी का जन्मस्थान:- हनुमान जी के जन्म स्थान को लेकर भी अलग अलग मत है। मध्यप्रदेश के आदिवासी कहते है की हनुमानजी का जन्म रांची ज़िले के गुमला प्रमंडल के अंजन नामक स्थान में हुआ था।

एक अन्य मान्यता के अनुसार हनुमानजी का जन्म स्थान कर्नाटक के पम्पा और हम्पी नामक स्थान में हुआ था। वर्तमान में इन स्थानों पर किष्किन्धा के बसे होने के पुरातात्विक संकेत मिले है।

कैथल हरियाणा प्रान्त का एक शहर है। इसकी सीमा करनाल, कुरुक्षेत्र, जीन्द, और पंजाब के पटियाला जिले से मिली हुई है। इसे वानर राज हनुमान का जन्म स्थानभी माना जाता है। इसका प्राचीन नाम था कपिस्थल। कपिस्थल कुरू साम्राज्य का एक प्रमुख भाग था। आधुनिक कैथल पहले करनाल जिले का भाग था। पुराणों के अनुसार इसे वानर राज हनुमान का जन्म स्थान माना जाता है। 

हनुमानजी के माता पिता:- हनुमानजी की माता का नाम अंजना (अंजनी) था। अंजनी पुत्र होने के कारण ही उन्हें आंजनेय कहा जाता है।

"अंजनी पुत्र पवनसुत नामा"

हनुमानजी के पिता का नाम केसरी था। जो कपि क्षेत्र के राजा थे अतः उन्हें कपिराज कहा जाता था। केसरी पुत्र होने के कारण हनुमानजी का एक नाम केसरीनंदन पड़ा।

"शंकर सुवन केसरी नंदन"

जन्म की कथा:- हनुमानजी के जन्म से जुडी हुई कई कथाएँ प्रचलित है आइये उन्ही से जुडी हुई कुछ कथाओ की चर्चा करें:-

1 शंकर जी का वरदान:- एक मान्यता के अनुसार केशरी जी अपनी पत्नी अंजना के साथ सुमेरु पर्वत पर रहते थे। उनकी कोई संतान नहीं थी। इस बात से दुःखी अंजना ने भगवान् शंकर के आराधना प्रारम्भ की। अंजना की कठोर तपस्या से प्रसन्न हो कर भगवान् शंकर ने उन्हें वरदान दिया की उनके एकादश रूद्र में से एक रूद्र के अंश से तुम्हे पुत्र की प्राप्ति होगी। शिवजी ने अंजना को एक मन्त्र दिया और कहा की इस मन्त्र के प्रभाव से शीघ्र ही दिव्य बलशाली और सर्व गुुण संपन्न पुत्र की प्राप्ति होगी।

2 पवन के अंश:-   समुद्र मंथन के बाद जब अमृत कलश को असुर लेकर भाग गए तब देवताओ को अमृत पान कराने के लिए भगवान् ने मोहिनी रूप धारण किया। शंकरजी भगवान् के उस मोहनी रूप पर मोहित हो गए और उनका वीर्यपात हो गया। उस वीर्य को पवन देव ने अंजना के कर्ण से उसके गर्भ में स्थापित कर दिया  कालान्तर  में उसे एक पुत्र की प्राप्ति हुई और नाम पड़ा पवनपुत्र।

3 दशरथ जी के यज्ञ हवि से:- दशरथ जी को कोई संतान नहीं थी अतः उन्होंने पुत्र कामेष्ठि यज्ञ कराया और यज्ञ हवि को अपनी रानियों को प्रदान किये। उसी समय उस यज्ञ हवि के एक भाग को गरुण उठा कर ले गए और उसे उस स्थान पर गिरा दिया जहॉ अंजना तपस्या कर रही थी। अंजना ने उस हवि को ग्रहण किया और कालान्तर में अंजना के गर्भ से हनुमानजी का जन्म हुआ।

4 केसरी और अंजनी से:- एक मान्यता के अनुसार केसरी जी वैन विहार को निकले थे और वैन में विचरण करते हुए उनकी नजर अंजना पर पड़ी। केसरी अंजना के सौन्दर्य पे मोहित हो गए। और कालांतर में उनके संयोग के हनुमान जी का जन्म हुआ।

                  ।।जय श्रीराम्।।
                 ।।जय हनुमान।।

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2 टिप्‍पणियां:

  1. अविश्वसनीय,अकल्पनीय, अदभुत जानकारियां है।हमें ब्लॉग के माध्यम से भक्ति भाव का रस पिलाने के लिए धन्यवाद।

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  2. इस टिप्पणी को लेखक द्वारा हटा दिया गया है.

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