मंगलवार, 11 अप्रैल 2017

हनुमानजी ने क्यों धारण किया पंचमुख?

हनुमानजी को प्रायः हमने एक मुख वाले स्वरुप में ही देखा है। पर कही कही हमें हनुमानजी पांच मुख वाले पंचमुखी स्वरुप में भी दिखाई देते है। पंचमुखी होने के पीछे की कथा रामायण काल के श्रीराम-रावण युद्ध के समय की है। आइये जाने क्यों हनुमानजी ने पांच मुख धारण किया और पंचमुखी कहलाये। 





हनुमानजी के पञ्च मुख होने का प्रमाण:- यह प्रमाण  पंचमुखी हनुमान कवच स्तोत्र में मिलता है:-

"पच्चवक्त्रं महाभीमं कपियूथसमन्वितम!
बाहुभिर्दशभिर्युक्त, सर्वकामार्थ सिद्धिदम !!२!!

श्री हनुमान जी का समस्त कामानाओं का देने वाला पांच मुखों का एवं दश भुजाओं से युक्त कपियूथ समन्वित भीमकात स्वरूप है!!"

हनुमानजी का पातळ लोक जाने का प्रमाण:- हनुमानजी के पाताल लोक जाकर अहिरावण से श्रीराम और लक्ष्मण को बंधन मुक्त कराने का प्रमाण हनुमान अष्टक में मिलता है:-

"बंधु समेत जबै अहिरावण, लै रघुनाथ पातळ सिधारो।
देविहिं पूजि भलि विधि सो बलि, देउ सबै मिलि मंत्र विचारो।
जाय सहाय भयो तब ही, अहिरावण सैन्य समेत संघारो।
को नहीं जानत है जग में कपि, संकट मोचन नाम तिहारो।"


लंका युद्ध में रावण की असफलता:- जब श्रीराम-रावण युद्ध प्रारम्भ हुआ तब श्रीराम की वानर और भालुओ की सेना ने अद्भुद पराक्रम दिखाया और रावण के महाभट्टो को और अनेक राक्षसो को मार गिराया। धीरे धीरे रावण की सैन्य शक्ति कमजोर होती गई और उसके प्रमुख द्वार भी राम सेना ने ध्वस्त कर दिए।

अहिरावण से सहायता:- जब रावण ने देखा की अब युद्ध में सीधे राम से विजय पाना कठिन है तब उसने अपने पाताल लोग निवासी भाई अहिरावण से सहायता मांगी और एक दूत पातळ भेजा। अहिरावण परम मायावी था साथ ही उसे भवानी देवी का विशेष वरदान प्राप्त था।अहिरावण को तंत्र-मन्त्र के साथ सारी सिद्धियाँ प्राप्त थी। अहिरावण को जब यह बात पता चला की उसका भाई रावण संकट में है तब वह तुरंत उसकी सहायता के लिए लंका पहुच गया।

अहिरावण का मायाजाल:- अहिरावण ने योजना बनाई की श्रीराम सहित सारी सेना पर माया जाल फैलाया जाये अतः श्रीराम के दल में चला गया और वहा अपना माया जाल फैला दिया। उसके मया जाल से श्रीराम लक्ष्मण सहित सभी सेना गहरी निद्रा में चली गई। अहिरावण ने सोते हुए श्रीराम-लक्ष्मण को अपने साथ पातळ लोक ले गया। 

विभीषण का हनुमानजी को पाताल भेजना:- सेना की मूर्छा समाप्त हुई तब श्रीराम-लक्ष्मण को अपने निकट न पा कर श्रीराम की सेना में खलबली मच गई। इतने में विभीषण ने यह जान लिया की यह सारा मायाजाल रावण के भाई अहिरावण का रचा हुआ है। अतः विभीषण ने तुरंत हनुमानजी को जा कर सारा वृत्तांत बताया और पाताल लोक जा कर श्रीराम-लक्ष्मण को बंधन से मुक्त कराने के लिए प्रेरित किया। 

हनुमानजी का पातळ पहुच कर अपने पुत्र से युद्ध:- हनुमानजी ने जब यह जाना की श्रीराम को अहिरावण ने पातळ में ले गया है तुरंत पातळ लोक पहुच गए। पाताल लोक में पहुचने के बाद वहा उन्हें उनका पुत्र मकरध्वज मिला। मकरध्वज को युद्ध में हनुमानजी ने हरा दिया। और श्रीराम-लक्ष्मण के पास पहुच गए।

श्रीराम लक्ष्मण के बलि की तैयारी:- अहिरावण ने श्रीराम-लक्ष्मण को पातळ ले जाने के बाद अपने आराध्या भवानी के सामने बलि देने का निश्चय किया। इसके लिए उसने अपनी माया से दोनों को मूर्छित कर दिया था और भवानी के सामने यज्ञ आहुति दे रहा था। बलि दे कर वह भवानी को प्रसन्न करके और भी अधिक शक्तियाँ प्राप्त करना चाहता था।

अहिरावण के वध का रहस्य:- श्रीराम लक्ष्मण को बंधन मुक्त कराने के लिए अहिरावण का मारा जाना आवश्यक था। अहिरावण की मृत्यु तब तक संभव नहीं था जब तक भवानी के सम्मुख पांचो दिशाओ में जलने वाले दीपक को एक साथ न बुझाया जाये। 

हनुमानजी का पंचमुखी स्वरुप और अहिरावण वध:- हनुमानजी को एक युक्ति सूझी की एक मुख से तो यह कार्य संभव नहीं है अतः प्रभु को बंधन मुक्त कराने पांच मुख धारण करना पडेगा। 

अतः हनुमानजी ने श्रीराम की कृपा से उनके नाम का उच्चारण करते हुए देखते ही देखते पांच मुख धारण कर लिया। उत्तर दिशा में वराह मुख, दक्षिण दिशा में नरसिम्ह मुख, पश्चिम में गरुड़ मुख, आकाश की ओर हयग्रीव मुख एवं पूर्व दिशा में हनुमान (वानर) मुख धारण किया। 


"पैठी पाताल तोरि जम कारें ,

अहिरावण के भुजा उखारे।।"

इसके बाद हनुमानजी ने एक साथ पांचो दीपक को बुझा दिया और युद्ध अहिरावण की भुजाओं को उखाड़ दिया फिर अहिरावण को मार कर श्रीराम और लक्ष्मण को पातळ लोक से पुनः लंका के युद्ध क्षेत्र में वापस ले आये।

इसप्रकार हनुमानजी ने श्रीराम लक्ष्मण को अहिरावण से बंधन मुक्त कराने और अहिरावण के वध करने के लिए पाताल लोक में जा कर पांच मुख धारण किये और पंचमुखी कहलाये।

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