सोमवार, 3 अप्रैल 2017

श्रीराम का प्राकट्य एवं माता से मधुर संवाद और अयोध्या के दिव्य उत्सव की झांकी !!

श्रीराम मर्यादा पुरुषोत्तम है और जिनका नाम लेने मात्र से ही जीव का कल्याण होता है आइये उन्ही श्रीराम के जन्म प्रसंग की झांकी का आनंद ले।
          
राम रामेति रामेति राम राम मनोरमे।
सहस्त्र नाम तत्तुल्यम राम नाम वरानने।।
                   
श्रीराम नाम का अर्थ :- 

रम क्रीडायाम धातु से शब्द बनता है राम जिसका अर्थ होता है रमण करना अर्थात जो अपने भक्तो के ह्रदय में निरंतर रमण करे वही श्रीराम है। श्रीराम के चरित्र का वर्णन किसी भी काल में कोई भी नहीं कर सकता। वे असीमित अपरिमेय अनुपमय है वेड पुराण शंकरजी नारद शेषजी सरस्वती आदि सभी नेति नेति कहकर वर्णन करते है ऐसे श्रीराम के चरित्रो का श्रवण मनन और गान करने से निश्चय ही मनुष्य का कल्याण होता है इसमें कोई शंसय नहीं है।                

अवतार का हेतु:-                

भगवान् के अवतार के विभिन्न हेतु होते है कोई कहता है भगवान् भक्तो को तारने आते है, कोई कहता है दुष्टो को मारने आते है, कोई कहता है मर्यादा-आदर्श स्थापित करने आते है पर वास्तव में भगवान् न मारने आते है न तारने आते है क्योकि मारना और तारना तो भगवान् संकल्प मात्र से कर सकते है। तो फिर भगवान् आते क्यों है?

 एक संत कहते है भगवान् इस धारा धाम में वात्सल्य रस पाने और अपने भक्तो को सगुण साकार भगवान् के आनंद प्रदान करने आते है। क्योकि भगवान् श्रीहरि नारायण को अपने दिव्य साकेत लोक में सब आनंद प्राप्त है पर वहां एक बात की कमी है। वहा भगवान् को वात्सल्य सुख नहीं है। 

"दानि सिरोमनि कृपानिधि नाथ कहउँ सतिभाउ।
चाहउँ तुम्हहि समान सुत प्रभु सन कवन दुराउ॥"

एक बार भगवान् ने सोचा कि क्यों ना किसी को माता पिता बनाया जाए। पर फिर समस्या आई की जो खुद ही सारे चरा-चर के माँ-बाप  बने बैठे है उनके माँ बाप कौन बनेगा। आगे मनु सतरूपा ने तपस्या की और भगवान् को अपने पुत्र के रूप में प्राप्त करने का वरदान माँगा। 

"तहँ करि भोग बिसाल तात गएँ कछु काल पुनि।
होइहहु अवध भुआल तब मैं होब तुम्हार सुत॥"


भगवान् ने उन्हें तीन बार तथास्तु कहा और तीन जन्म तक उनके बालक बनकर आने की बात कही। 

 मानस के अनुसार:-

मानस के अनुसार श्रीराम के अवतार का हेतु बताते हुए गोस्वामीजी कहते है-            
   
"विप्र धेनु सुर संत हित, लीन्ह मनुज अवतार।"

गोस्वामी जी कहते है की ब्राह्मण, गौ माता, देवताओ और संतो के हित के लिए, उनके कल्याण के लिए, उन्हें अपनी करुणा और दिव्य प्रेम प्रदान करने के लिए श्रीराम मनुष्य रूप में प्रकट हुए।                

 पूर्व जन्म:-
                   
पहला जन्म हुआ कश्यप-अदिति के यहाँ वामन रूप में। भगवान् एक छोटे से विप्र ब्राह्मण बन कर आये। पर उस अवतार में भगवान् कहते है कि वात्सल्य भाव का आनंद अधिक नहीं मिला। क्योकि विराट अवतार ने सब गड़बड़ कर दिया। बामन से विराट बने भगवान् को देख कर माता अदिति और महर्षि कश्यप की कहां हिम्मत थी की ळुरू ळुरू करके भगवान् को वात्सल्य प्रेम दे सके। अतः वामन अवतार में पूर्ण स्नेह प्राप्त नहीं हुआ।

फिर दूसरा जन्म जब मनु सतरूपा ने कौशल्या और दशरथ के रूप में लिया तब भगवान् ने सोचा की इस बार नहीं चूकेंगे वामन अवतार की कसर इस बार पूरी करते है। भगवान् माता कौसल्या के गर्भ में आ गए।  उसके बाद श्रीराम जन्म के पूर्व प्रकृति उनके स्वागत के लिए तैयार हो गई।

प्रकृति की अनुकूलता:-      

"नौमी तिथि मधु मास पुनीता। सुकल पच्छ अभिजित हरिप्रीता॥
मध्यदिवस अति सीत न घामा। पावन काल लोक बिश्रामा॥"


योग, लग्न, गृह, वार और तिथि सभी अनुकूल हो गए। श्रीराम के जन्म की बात से जड़ और चेतन सभी अत्यंत हर्ष से भरे हुए थे। फिर चैत्र का महीना आ गया, शुक्ल पक्ष आ गया, नवमी तिथि आ गई, अभिजीत मुहूर्त आ गया, दोपहर का समय था, वातावरण में न अधिक शीतलता थी न ही अधिक ऊष्णता। इस प्रकार समस्त लोको को आनंदित करने वाला वह पवित्र समय आ गया। 

श्रीराम जन्म के समय शीतल मंद सुगन्धित वायु चलने लगी, देवता अत्यंत हर्षित थे, ऋषि मुनियो  के मन में उत्कण्ठा व्याप्त थी। वन-उपवन फूलो से आक्षादित थे, पर्वतो के समूह ऐसे जगमगा रहे थे मानो वे मानियो से आक्षादित हो, और नदियां अमृत के सामान जल का प्रवाह कर रही थी।

जब ब्रह्मा जी ने श्रीराम जन्म का समय जाना तब सारे देवी देवताओ को लेकर अयोध्या के आकाश मंडल पर छा गए। गन्धर्व भगवान् के गुणानुवाद गाने लगे, आकास में दुन्दुभिया बज उठी, देवता पुष्प वर्षा करने लगे। नाग, मुनि, देवता आदि विविध प्रकार से स्तुति करने लगे।

श्रीराम का प्राकट्य (जन्म):-              

"भए प्रगट कृपाला दीनदयाला कौसल्या हितकारी।
हरषित महतारी मुनि मन हारी अद्भुत रूप बिचारी॥"

भगवान् के प्रकट होने का समय आ गया और वे दीन-दयाल भगवान् कौशल्या माता के ह्रदय हो आनंदित करने प्रकट हो गए। भगवान् के स्वरुप को देख कर माता कौशल्या विचार करने लगी की ये कैसा अद्भुद बालक है।

"लोचन अभिरामा तनु घनस्यामा निज आयुध भुज चारी।
भूषन बनमाला नयन बिसाला सोभासिंधु खरारी॥"


भगवान का स्वरुप नेत्रो को आनंद प्रदान करने वाला था, मेघो के समान  श्यामवर्ण था, चार भुजाएँ थी, जिनमे शंक, चक्र, गदा और पद्म शोभा बड़ा रहे थे। अनेक दिव्य आभूषण और माला धारण किये हुए थे, भगवान् के विशाल नेत्र थे। इस प्रकार भगवान् माता कौशल्या के सामने एक अद्भुद बालक बने प्रकट हो गए।

श्रीराम-कौशल्या संवाद:-
                  
माता कौशल्या श्रीराम के इस दिव्य स्वरुप को देख कर विविध प्रकार से स्तुति करने लगी। भगवान् ने देखा की माता कौशल्या यदि इस प्रकार से स्तुति गान करती रहेंगी तो हमारे अवतार का प्रयोजन कैसे पूर्ण होगा अतः श्रीराम ने उन्हें उनके पूर्व जन्म की कथा बता कर समझाया कि हे माता आप ने ही पूर्व जन्म में मुझे पुत्र रूप में प्राप्त करने घोर तपश्या की थी उसी के फल स्वरुप आज मै आप का पुत्र बन कर आपके सामने खड़ा हूँ। 

भगवान् बोले की माता आप ये स्तुति करना बंद करो बहुत स्तुति सुन चुका हूँ सारे वेद-पुराण मेरे स्तुति गान से भरे पड़े है मै तो आपसे बस वात्सल्य रस का आनंद पाने आया हूँ।

माता बोली हे भगवान् आप अपने आप को पुत्र कहते हो आप तो पुरे बाप बने खड़े है। पुत्र बनने का वरदान दिया था तो पुत्र बन कर ही आते।

भगवान् बोले माता मुझे पुत्र बनने का अनुभव कम है, अतः आप ही सीखा दो कि शिशु कैसे बना जाता है।

"माता पुनि बोली सो मति डोली तजहु तात यह रूपा।
कीजै सिसुलीला अति प्रियसीला यह सुख परम अनूपा॥"


माता बोली ठीक है मै सिखाती हूँ, सबसे पहले तो ये चार हाथ है उसे कम करो चार हाथ के बच्चे बनकर आओगे तो दुनिया भर की भीड़ लग जाएगी। फिर अपना ये वस्त्र उतारो बच्चे कोई वस्त्र आभूषण पहनकर पैदा नहीं होते। फिर अपने इस शंख, चक्र, गदा, पद्म का त्याग करो बच्चे कोई लाठी बन्दुक ले के पैदा नहीं होते। शिशु बने हो तो शिशु बनकर ही आना होगा।

भगवान् मुस्कुराये और अपने दो हाथ गायब कर लिए पीताम्बर का त्याग कर दिया अपने आयुध अन्तर्धान कर लिए और छोटे से बालक बन कर माता के सामने खड़े हो गए और बोले माता जी अब ठीक है।

माता बोली नहीं अभी भी कसर है।

भगवान् बोले अब क्या कसर है?

माता बोली बच्चे कोई हँसते मुस्कुराते पैदा होते है क्या? छोटे शिशु की भाँति रुदन करना होगा।

भगवान् बोले रोना क्यों होगा?

माता बोली हमारे संसार का नियम है यदि बच्चा पैदा होते ही न रोये तो माँ बाप को रोना आता है की हे भगवान् ये बच्चा गूँगा बहरा तो नहीं। इसलिए बालक बने हो तो रोना पडेगा।              

"सुनि बचन सुजाना रोदन ठाना होइ बालक सुरभूपा।"

भगवान् ने सोचा अजीब संसार है पैदा होते ही रुलाता है। भगवान् ने अपने चेहरे से अपनी मनमोहिनी मुस्कार को हटा कर रुदन करने लगे।

"सुनि सिसु रुदन परम प्रिय बानी। संभ्रम चलि आईं सब रानी॥
हरषित जहँ तहँ धाईं दासी। आनँद मगन सकल पुरबासी॥"


इस प्रकार तीनो लोक के स्वामी एक नन्हे बालक के रूप में अवतार धारण किये और एक साथ भगवान् श्रीराम-लक्ष्मण, भरत-शत्रुघ्न के रूप में अवतार लिए। भगवान् के रुदन की ध्वनि इतनी प्यारी थी की सभी आनंद से मग्न हो गए।

"दसरथ पुत्रजन्म सुनि काना। मानहुँ ब्रह्मानंद समाना॥"

जब पुत्र जन्म की बात राजा दशरथ ने सुनि तो मानो उन्हें ब्रह्मानंद प्राप्त हो गया वे इतने हर्षित और आनंदित हुए। 

 जन्मोत्शव:-               
 
"गृह गृह बाज बधाव सुभ प्रगटे सुषमा कंद।
हरषवंत सब जहँ तहँ नगर नारि नर बृंद॥"


जन्म के बाद अयोध्या नागरी को विविध प्रकार से सजाया गया। ध्वजा, पताका और तोरण आदि से नगर आक्षादित हो गया। आकास से पुष्प वर्षा होने लगी। सभी लोग ब्रह्मानंद को प्राप्त हो रहे थे। विविध प्रकार के वाद्य यंत्रो और नाच गान कर प्रजा उत्सव मनाने लगी। 

"नंदीमुख सराध करि जातकरम सब कीन्ह।
हाटक धेनु बसन मनि नृप बिप्रन्ह कहँ दीन्ह॥"

राजा दशरथ ने ब्राह्मणों को सोना, गौ और मानियो आदि का दान किया। अनाज और वस्त्र आभूषण सारे प्रजा में बांटे गए। नगर की नारियाँ विविध प्रकार के श्रृंगार कर मंगल गान कर रही थी।


"प्रकटे हैं चारों भैया अवध में बाजे बधाईया।
बाजे बधाईयां बाजे शहनाईंयां।
प्रकटे हैं चारों भैया अवध में बाजे बधाईया।।

गलिन गलिन में धूम मची है-2
बाज रही शहनाईयां अवध में बाजे बधाईयां।।
प्रकटे हैं चारों भैया अवध में बाजे बधाईया।।

जगमत जगमत दिवला जलत है-2
झिलमिल होत अटरिया अवध में बाजे बधाईयां।।
प्रकटे हैं चारों भैया अवध में बाजे बधाईया।।

मईया लुटावे हीरे मोती-2
राजा लुटावे रुपइया अवध में बाजे बधाईयां।।
प्रकटे हैं चारों भैया अवध में बाजे बधाईया।।


झांझ मृदंग ताल ढप बाजे-2
नाचे ता ता थइया अवध में बाजे बधाईयां।।
प्रकटे हैं चारों भैया अवध में बाजे बधाईया।।"

 सूत-मागध और बंदी-जन रघुकुल के यशोगान करने लगे। अयोध्या नागरी के उस आनंद, सुख, संपत्ति, समय और समाज का वर्णन सरस्वती और भगवान् अनंत भी अपने सहस्त्र मुखो से नहीं कर सकते। 
"मास दिवस कर दिवस भा मरम न जानइ कोइ।
रथ समेत रबि थाकेउ निसा कवन बिधि होइ॥"

श्रीराम जन्म के समय दिन महीने भर का हो गया अर्थात सूर्य एक माह तक अस्त नहीं हुए और दिन बना रहा। सूर्य अपने रथ सहित ठहर गए थे। यह सभी दृश्य देख कर सुर नर नाग मुनि गन्धर्व आदि अपने भाग्य की सराहना करने लगे। भगवान् शंकर और काकभुशुण्डि दोनों उस अयोध्या के दिव्य उत्सव को देखने गए थे पर मनुष्य रूप में होने के कारण उन्हें कोई जान नहीं सका।

"औरउ एक कहउँ निज चोरी। सुनु गिरिजा अति दृढ़ मति तोरी॥
काक भुसुंडि संग हम दोऊ। मनुजरूप जानइ नहिं कोऊ॥"


इस प्रकार भगवान् के जन्म का यह अत्यंत मनोरम लीला हुई जो सभी के ह्रदय को आनंद से भरने वाली है। श्रीराम के इस अनुपम चरित्र को कहने सुनाने वाला उनके परम धाम को प्राप्त करता है।

।।जय श्रीराम।।         

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2 टिप्‍पणियां:

  1. ठीक है राम जन्म पर सूर्य एक महीना तक स्थिर ठहर गये थे तो समय की गणना कैसे किया गया गया, जब रात ओर दिन होना बन्द ही हो गया तो एक महीना की गणना हुई कैसे,
    पुराने समय मे कोई टाइटन या सोनाटा तो होगी नही जिसे मालूम लगे कि एक महीना का समय हो गया है।

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