सोमवार, 1 मई 2017

भगवान् परशुराम ने अपने ही शिष्य पितामह भीष्म से क्यों युद्ध किया?

महाभारत काल में काशी नरेश की तीन पुत्रिया थी अम्बा, अम्बिका और अम्बालिका। काशी नरेश ने तीनो का स्वयंबर कराया जिसमे हस्तिनापुर के राज कुमारो को नहीं बुलाया गया था। अतः भीष्म हस्तिनापुर की तरफ से स्वयंबर में पहुच गए और वहां उपस्थित सारे राजाओ को हराकर तीनो राजकुमारियों का हरण करके हस्तिनापुर ले आये।

 राजकुमारियों का विवाह विचित्रवीर्य से होने वाला था। पर अम्बा ने जब उन्हें यह बताया की वह शाल्व से प्रेम करती है तब विचित्रवीर्य ने उनसे विवाह करने से मना कर दिया। भीष्म ने उसे शाल्व के पास भिजवा दिया। अम्बा हस्तिनापुर से सीधे शाल्व के पास पहुची पर शाल्व ने भी यह कहकर की तुम्हे भीष्म अपहरण कर ले गया था अम्बा से विवाह करने से मना कर दिया।

 अब अम्बा के सामने दुविधा उत्पन्न हो गई। वह पुनः हस्तिनापुर पहुची और भीष्म से विवाह करने के लिए यह कहकर आग्रह करने लगी की तुमने ही मेरा अपहरण किया था अतः तुम ही मुझ से विवाह करो। भीष्म ने अपनी प्रतिज्ञा बता दी की मै इस जन्म में ब्रह्मचर्य का व्रत ले चुका हु अतः तुमसे विवाह नहीं कर सकता।

 अम्बा निराश होकर आत्महत्या करने जाने लगी तभी कुछ संत मिले उन्होंने उसकी व्यथा जानकार उसे भगवान् परशुराम के शरण में जाने के लिए कहा। अम्बा भगवान् परशुराम के पास गई और सारा वृतान्त उन्हें सुना दिया। भगवान् परशुराम भीष्म के गुरु है अतः उन्होंने भीष्म के पास यह आदेश भेजवाया की या तो इस कन्या से विवाह करे या मुझ से युद्ध करे। 

भीष्म को जब यह बात पता चली तब वह तुरंत युद्ध के मैदान में आ खड़ा हुआ। इधर से भगवान् परशुराम भी युद्ध क्षेत्र में आ गए। भीष्म कवच धारण कर रथ में सवार होकर आया था और भगवान् परशुराम पैदल ही बिना किसी कवच के वहा पहुचे थे। भीष्म ने अपने गुरु भगवान् परशुराम से आग्रह किया की आप भी रथ में आरूढ़ हो कवच धारण करके आइये तब आप से युद्ध करूँगा। 

भगवान् परशुराम ने कहा यह धरती मेरा रथ है, वायु उसके अश्व और माँ गायत्री मेरा कवच है अतः तुम मुझसे युद्ध करो। भीष्म ने जब यह बात सुनी तो वह भी उन्ही के सामन कवच का त्याग कर और रथ से नीचे आ गए। युद्ध प्रारम्भ करने के पूर्व भीष्म ने अपने सारे अस्त्र रख दिए और पैदल चल कर भगवान् परशुराम के पास आये और हाथ जोड़ कर चरणों में प्रणाम किया और अपने गुरु और प्रतिद्वंदी भगवान् परशुराम से विजय का आशीर्वाद पहले ही ले लिया।

 भगवान् परशुराम भीष्म की इस चतुरता पर मुग्ध हो गए और उसे विजयश्री का आशीर्वाद दे दिया। भीष्म वापस अपनी रथ की तरफ चल पड़े और भगवान् परशुराम को युद्ध के लिए सावधान किया। भगवान् परशुराम ने भी अपने धनुष की टंकार से तीनो लोको को कम्पित कर दिया। दोनों के बीच भीषण युद्ध प्रारम्भ हो गया। दोनों तरफ से अनेक दिव्यास्त्रों का प्रयोग होने लगा। कभी भीष्म परशुराम पर भारी पड़ते तो कभी परशुराम भीष्म पर।

 भगवान् परशुराम को उनके पिता जमदग्नि ने चिरंजीवी रहने का आशीर्वाद दिया था तो भीष्म को उनके पिता शांतनु ने इक्षा मृत्यु का अतः दोनों का ही वध संभव नहीं था। परंतु भगवान् परशुराम ने युद्ध के पूर्व भीष्म को विजय का आशीर्वाद दिया था इसलिए भीष्म ने उन्हें युद्ध में निःशस्त्र कर दिया। परशुराम को निः शास्त्र देख कर भीष्म ने अपना धनुष नीचे रख दिया और पुनः भगवान् परशुराम के पास पहुच गए। 

भगवान् परशुराम ने कहा की तुमने मुझे निःशस्त्र कर दिया है अतः या तो मुझे मार दो या लौट जाओ। भीष्म ने अपने गुरु परशुराम को प्रणाम कर कहा की हे भगवन मै अम्बा से विवाह नहीं कर सकता क्योकि मै ने ब्रह्मचर्य का व्रत ले लिया है अतः आप से आपकी आज्ञा के अनुसार ही युद्ध करने आ गया। अब यदि आपकी आज्ञा है की मै वापस चला जाऊ तो मै चला जाता हु। ऐसा कहकर भीष्म ने भगवान् परशुराम को प्रणाम किया और चले गए। 

उधर अम्बा को जब यह पता चला की भगवान् परशुराम ने भीष्म को विवाह के लिए तैयार नहीं कर पाये तब उसने भीष्म को श्राप दे दिया की अगले जन्म में मै ही उसकी मृत्यु का कारन बनूँगी कहकर अपने प्राण त्याग दिए। अगले जन्म में वह शिखंडी बानी जिसकी आड़ ले कर अर्जुन ने भीष्म को बाणों की शैय्या में सुलाया था। इस प्रकार एक महान गुरु और उसके महान शिष्य के बीच ऐतिहासिक युद्ध हुआ।

यह भी पढ़े:-

4 टिप्‍पणियां: