बुधवार, 10 मई 2017

विवाह के सात वचन जो क़ि कन्या अपने होने वाले पति से लेती है!!

हमारे सनातन हिन्दू धारण के अनुसार पत्नी अपने पति से विवाह पूर्व सात वचन लेती है जिसे पति को जीवन भर निभाने का वचन देना होता है। प्रायः ये वचन विवाह संपन्न कराने वाले पंडित जी संस्कृत में या हिन्दी में पड़ कर विवाह के समय सुना देते है। आइये जाने विवाह के समय पत्नी द्वारा अपने पति से लिए जाने वाले वे सात वचन क्या है:-

1 पहला वचन (धार्मिक कार्यो में सहभागिता) :- हमारे सनातन हिन्दू धर्म में धर्म कर्म की प्रधानता है और चार पुरुसार्थ में भी धर्म का स्थान पहला है। अतः पत्नी अपने पति से पहले वचन के रूप में यह वचन लेती है की आप मुझे अपने प्रत्येक धर्म-कर्म के कार्यो में सामान सहभागी बनाएंगे। आप कोई भी पूजन भजन जप तप अथवा तीर्थ यात्रा का कोई कार्य मेरे बिना नहीं करेंगे। इस वचन का कारन यह है की पति और पत्नी के बीच सामान धर्म-कर्म कर सामान पूण्य फल की प्राप्ति करना है।

2 दूसरा वचन (अपने मायके के प्रति सम्मान) कन्या विवाह के बाद अपने पुराने परिवार को छोड़ कर अपना एक नया परिवार बसाती है, परंतु अपने मायके से उसे सामान भाव से प्रेम और स्नेह होता है। अपने दूसरे वचन में पत्नी अपने पति से यह वचन मांगती है की जिस प्रकार मै अपने पुराने घर को छोड़ कर आप के घर आ रही हूँ, आपके माता-पिता और सगे-संबंधियो को अपना रही हूँ उसी प्रकार आप भी मेरे माता-पिता और सगे संबंधियो को उसी भाव से अपनाएंगे। इस वचन का कारण यह है की पति-पत्नी के बीच परस्पर तालमेल बना रहे।

3 तीसरा वचन (हर परिस्थिति में साथ):- जीवन के तीन बड़े ही महत्वपूर्ण पड़ाव माने गए है-बाल्यावस्था, युवावस्था और वृद्धावस्था। अगले वचन के रूप में पत्नी अपने पति से वचन लेती है की आप मेरी हर अवस्था में सामान भाव से साथ निभाएंगे। पत्नी को जीवनसंगिनी कहा जाता है अतः आप जीवन भर मेंरा साथ निभाएंगे। भविष्य में यदि मेरे साथ कोई दुर्घटना अथवा शरीरिक अक्षमता या कोई विकृति आती है तब भी आप मेरा साथ निभाएंगे। इस प्रकार तीसरे वचन से पत्नी अपने पति को अपने प्रति जिम्मेदारी का अहसास कराती है।

4 चौथा वचन (जीविकोपार्जन):- हमारे सनातन हिन्दू धर्म में मुख्यतः पति का कार्य धनोपार्जन करना और पत्नी का का कार्य गृहस्थी का संचालन करना होता है। पत्नी अपने पति से कहती है की आप मेरे और अपने परिवार की जीविकोपार्जन के लिए धर्मानुसार कर्म करते हुए धनोपार्जन कर हमारी आवश्यकताओं की पूर्ति करे। इस वचन के द्वारा पत्नी अपने पति को अपने परिवार के प्रति जिम्मेदारी का अहसास कराती है।

5 पाचवा वचन (आर्थिक सहभागिता) पांचवे वचन के रूप में पत्नी पति से वचन लेती है की किसी भी प्रकार का कोई भी आर्थिक लेंन-देंन आप मेरी जानकारी के बाहर नहीं करेंगे। आप पारिवारिक कार्यो के संचालन में मेरी सहायता लेकर ही कोई निर्णय लेंगे। आज के परिवेश में इस वचन का महत्त्व और भी बड़ जाता है। यदि पति का कोई दुर्घटना हो जाय तब ऐसी स्थिति में पत्नी घर गृहस्थी को आगे सफलता पूर्वक चला सके इस भावना से यह वचन लिया जाता है।

6 छठवा वचन (उत्तम चरित्र) पति-पत्नी के जीवन में परस्पर एक दूसरे के प्रति सम्मान और आदर का भाव हो इस भावना से पत्नी पति से छठे वचन के रूप में अपने प्रति सम्मान का वचन लेती है। पति जीवन भर पत्नी का सम्मान करे। उससे यदि किसी प्रकार की कोई गलती भी हो जाय तो सार्वजनिक रूप से उसे अपमानित न करे एकांत में उसे समझाए। कभी अपने पत्नी का अपमान न करे। पति के उच्च चरित्र की बात करते हुए पत्नी पति को जुआ, मदिरापान, नशा, परस्त्रीगमन आदि विकारो से दूर रहने का वचन लेती है। यह वचन आज के परिवेश में बहुत आवश्यक है क्योकि आज अधिकाँश दाम्पत्य जीवन इन दुर्विकारो के कारण टूट जाते है।

7 सातवा वचन (एक पत्नी व्रत):- विवाह के बाद दाम्पत्य जीवन अपने जीवन साथी के प्रति पूर्ण समर्पण और एकात्म भाव से ही सफल होता है। अतः इस भावना से पत्नी अपने पति से वचन लेती है कि आप जीवन भर केवल मुझ से ही सम्बन्ध रखेंगे। पराई किसी स्त्री के साथ आप नाता नहीं रखेंगे। परस्त्रीगमन नहीं करेंगे। पर स्त्री को अपनी माता के सामान समझेंगे। 

हमारे सनातन हिन्दू धर्म ने विवाह को एक अत्यंत महत्वपूर्ण संस्कार माना गया है। यह पति पत्नी के बीच एक पवित्र बंधन होता है जो विशवास और परस्पर सामंजस्य की बुनियाद पर होता है। विवाह का यह बंधन सनातन हिन्दू धर्म के रिति रिवाजो के साथ परिवार और समाज के उपस्थिति में संपन्न कराया जाता है। विवाह के समय अनेक प्रकार की वैवाहिक प्रक्रियाओ का पालन वर-कन्या के द्वारा किया जाता है, जिसमे एक अत्यंत महत्वपूर्ण प्रक्रिया होती है पत्नी के द्वारा पति से वचन लेना।

इसप्रकार विवाह के समय कन्या अपने वर से ये सात वचन लेती है ताकि उनका दाम्पत्य जीवन सुखमय हो सके। आज के इस परिवेश के हिसाब से भी ये सात वचन बहुत ही उपयोगी है क्योकि आज छोटी छोटी गलतफमियो और परस्पर सामंजस्य न होने की वजह से सम्बन्ध टूट जाते है। अतः हमारे सनातन हिन्दू धर्म के इस वैवाहिक दर्शन को समझ कर वर कन्या इन वचनो को आत्मसात कर एक सफल दाम्पत्य जीवन का निर्वहन कर सकते है।

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