बाहुबलि फ़िल्म के रिलीज होने की बाद माहिष्मती साम्राज्य की चर्चा आज कल सभी लोगो की जुबान पर है। पर क्या आपने कभी सोचा है क़ि ये माहिष्मती साम्राज्य किस काल में और किस स्थान में स्थित था। तो आइये जाने माहिष्मती साम्राज्य कब और कहाँ तक फैला था।
माहिष्मती साम्राज्य का प्रमाण त्रेतायुग में सबसे पहले मिलता है। त्रेतायुग मे भगवान् परशुराम का अवतार माहिष्मती साम्राज्य क्षेत्र में ही हुआ था। उस समय माहिष्मती साम्राज्य का विस्तार नर्मदा नदी के तट से लगे क्षेत्रो में था। माहिष्मती साम्राज्य के अन्तर्गत अवन्ति और अनूपा साम्राज्य आता था। साम्राज्य का भौगोलिक विस्तार दक्षिण उज्जैन ने लेकर प्रतिस्थान, माहेश्वर और मांधाता तक फैला हुआ था।
उस समय के अन्य साम्राज्यो की तुलना में माहिष्मती साम्राज्य अधिक समृद्ध, सैन्य बल से परिपूर्ण और अधिक विस्तार वाला था। उस काल में माहिष्मती साम्राज्य की प्राकृतिक क्षटा देखते ही बनती थी। चारो तरफ से हरियाली से आच्छादित वह क्षेत्र नर्मदा के तट पर अनेक सभ्यताओ का साक्षी रहा है। उस साम्राज्य की प्रसिद्दि का अंदाजा इसी बात से लगाया जा सकता है की वहां भारत के लगभग सभी प्रान्तों और साम्राज्यो सहित दुनिया भर के व्यापारी व्यापार करने आते थे, अनेक प्रकार की वनस्पतियो से युक्त यह प्रदेश आयुर्विज्ञान का भी केंद्र रहा है।
यहाँ के सैनिक शक्ति और युद्ध कौशल के सामने कोई भी ताकतवर साम्राज्य घुटने टेक देता था। इस बात का अंदाजा इसी बात से लगाया जा सकता है की रावण भी उस साम्राज्य के वैभव को प्राप्त करने की कामना रखता था और उसने जब उस साम्राज्य को प्राप्त करना चाहा तब वहा के राजा सहस्त्रार्जुन ने उसे अपनी कांख में 6 महीने तक दबा कर रखा था।
त्रेतायुग में वहां हैहयवंशी क्षत्रियो का शासन था जिनमे अनेक महान राजा हुए थे। उन्ही में से एक कार्तिवीर्य थे। जिनके पुत्र कार्तिविर्यार्जुन या सहस्त्रार्जुन हुए जिनके बारे में विख्यात है क़ि उनकी हजार भुजाएँ थी और उसे भगवान् परशुराम ने अपने परशु से काट काट कर समाप्त कर दिया था। तो इस प्रकार त्रेतायुग में भगवान् परशुराम के समकालीन माहिष्मती साम्राज्य के होने के प्रमाण मिलते है।
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जय महिष्मति।।।
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