शनिवार, 6 मई 2017

दस सिर वाला रावण हजार भुजाओँ वाले सहस्त्रार्जुन से हार गया था!!

भगवान् शंकर और ब्रह्माजी से वरदान प्राप्त कर रावण अपने अहंकार में चूर हो कर दिग्विजय करने निकला। रावण दक्षिण के क्षेत्रो पर विजय प्राप्त करता हुआ मध्य भारत पहुचा जहा माहिष्मती साम्राज्य स्थापित था।

 उस समय माहिष्मती साम्राज्य में सहस्त्रार्जुन नाम का राजा राज्य करता था। सहस्त्रार्जुन को भगवान् दत्तात्रेय का वरदान प्राप्त था। सहस्त्रार्जुन को वरदान स्वरुप हजार भुजाओ का बल प्राप्त था।

 एक दिन की बात है रावण माहिष्मती साम्राज्य में नर्मदा तट के किनारे अपने सैनिको सहित विश्राम कर रहा था। रावण का प्रतिदिन का नियम था की वह सुबह पार्थिव शिवलिंग बना पूजा किया करता था। रावण ने पार्थिव शिवलिंग का निर्माण किया और पूजन करने लगा। 

उधर सहस्त्रार्जुन अपनी रानियों के साथ नर्मदा तट पर जलक्रीड़ा करने पहुँचा। जलक्रीड़ा करते समय उसकी रानियों ने सहस्त्रार्जुन से कुछ करतब दिखाने का आग्रह किया। तब सहस्त्रार्जुन ने अपनी हजार भुजाओ से नर्मदा के जल प्रवाह को रोक दिया। 

परिणाम स्वरुप नर्मदा का जल एक निर्धारित स्थान पर एकत्रित होने लगा और उसका परिमाण भी बढ़ने लगा। जल का स्तर बढ़ता हुआ रावण के शिविर तक जा पहुचा और रावण द्वारा स्थापित पार्थिव शिवलिंग को बहा कर ले गया।

 इस बात पर रावण को अत्यंत क्रुद्ध आया और उसने अपने सेना के एक टुकड़ी को आदेश दिया की जा कर इस बाद के कारण का पता लगाओ। सैनिको ने जब जा कर देखा तब उन्होंने पाया की यह सब सहस्त्रार्जुन का किया हुआ है अतः रावण के पास आ कर सारा वृत्तांत कह दिया।

 इस पर रावण को क्रोध आया और उसने सहस्त्रार्जुन पर हमला कर दिया। सहस्त्रार्जुन ने युद्ध के समय रावण के सारे सैनिक मार दिए और अंत में रावण और सहस्त्रार्जुन का युद्ध प्रारम्भ हो गया। दोनों के पास दिव्य वरदान था और दोनों अजेय थे।

 सहस्त्रार्जुन ने युद्ध करते हुए रावण को बंदी बना लिया और उसे अपनी कांख में 6 माह तक दबाये रखा। इस प्रकार सहस्त्रार्जुन ने रावण के युद्धाभिमान को तोड़ा। अंत में जब रावण के दादा ऋषि पुलत्स्य ने आकर बीच बचाव किया तब कही जा कर सहस्त्रार्जुन ने रावण को बंधन से मुक्त कराया। इस प्रकार दस सर वाला रावण हजार भुजाओ वाले सहस्त्रार्जुन से युद्ध में हार गया था।

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