बुधवार, 16 नवंबर 2016

जानिये दान और उसके नियम क्या है?

नित्यकर्म में दान भी आता है।

 वेद ने आदेश दिया है कि दान बहुत ही श्रद्धा के साथ करना चाहिए।

दान धर्मोपार्जित धन से किसी जरूरतमंद को अथवा मांगे जाने पर अपनी क्षमता के अनुसार करना चाहिए।

अपनी जैसी संपत्ति हो, उसके अनुसार दान करना चाहिए। 

देते समय अभिमान न हो। 

लज्जा से विनम्र हो कर दान देना चाहिए। 

भय मान कर दान देना चाहिए। 

दान हमेशा सुपात्र को करना चाहिए और प्रतिदिन करना चाहिए। 

यह आवश्यक नहीं की दान की मात्र अधिक ही हो, शास्त्र का आदेश है की विपन्नता की स्थिति में यदि एक समय का ही भोजन मिले तो भी उसका एक ग्रास दान करना चाहिए। 

महाभारत में कहा गया है की यदि कोई दिन बिना दान दिए बीत जाय तो उस दिन इस प्रकार शोक करना चाहिए जैसे लुटेरो के द्वारा लूट जाने पर शोक व्यक्त किया जाता है। 

दान देने वाला पूरब और लेने वाले को उत्तर की ओर मुख करना चाहिए। 

माता , पिता और गुरु को अपने पुण्य का भी दान किया जा सकता है। 

दान देने से पहले दान लेने वाले ब्राह्मण की पूजा कर लेना चाहिए। 

दी जाने वाली वास्तु की भी शुद्धि कर लेना चाहिए।

हमारे सनातन धर्म में सर्वश्रेष्ठ दानियों में भक्त प्रह्लाद के पौत्र राज बलि और दानवीर कर्ण का नाम विख्यात है।




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