यज्ञ के प्रकार:-
साधारणतः नौ कुण्डीय यज्ञ अधिक किये जाते है। जो निम्न प्रकार है:-
1 चतुरस्र कुण्ड (पूर्व में) - सर्व सिद्धि दायक है।
2 योनि कुण्ड (अग्निकोण में) - पुत्र दायक।
3 अर्द्ध चंद्र कुण्ड (दक्षिण में) - सुखमय जीवन दायक।
4 त्रिकोण कुण्ड (नैऋत्य कोण में) - शत्रुनाशक है।
5 वृत्त कुण्ड (पश्चिम में) - शान्तिदायक है।
6 षड्स्त्र कुण्ड ( वायव्य कोण में) - मृत्यु दायक व विजयदायक है।
7 पद्म कुण्ड ( उत्तर में) - तांत्रिक प्रभावो से मुक्ति।
8 अष्टोस्त्र कुण्ड ( ईशान में) - रोग नाशक है।
9 आचार्य कुण्ड ( मध्य में ) - सर्वकामना सिद्धिदायक है।
यज्ञ से जुडी अन्य महत्वपूर्ण जानकारियां:-
1 प्रत्येक कुण्ड में तीन तीन मेखला होती है। ऊपर की मेखला का रंग सफ़ेद, मध्य की लाल व नीचे की मेखला का रंग काल होता है।
2 धर्मोपार्जित धन को ही यज्ञ में लगाना चाहिए।
3 सिले वस्त्र पहनकर यज्ञ करना वर्जित है।
4 प्रज्वलित अग्नि में ही आहुति देनी चाहिए।
5 शाकल्य में तिल की ही अधिकता होनी चाहिए। जौ की अधिकता से दरिद्रता आती है। चावल की अधिकता से रोग आता है।
6 मंत्र शुद्ध होने चाहिए।
7 हवन की समिधा एवं अन्य पदार्थ शुद्ध होने चाहिए।
8 हवन जिस स्थान में किया जा रहा हो वह भी शुद्ध होना चाहिए।
9 बाह्य और अंतःकरण की शुद्धि के बाद ही यज्ञ करना चाहिए।
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