मौन-व्रत
व्रत कुछ करने ना करने का दृढ़ संकल्प है।
इसमें भोजन का परहेज नहीं अपितु वाणी का परहेज होता है।
आप अपने क्षमता अनुसार 1 दिन से ले कर महीने और सालो तक ये व्रत कर सकते है।
मौन वृत किसी भी अवस्था किसी भी वर्ग या लिंग का व्यक्ति ले सकता है।
इसके लिए कोई दिन तिथि या वार निर्धारित नहीं है आप जब कहे मौन व्रत का संकल्प ले सकते है।
इसमें भोजन का परहेज नहीं अपितु वाणी का परहेज होता है।
आप अपने क्षमता अनुसार 1 दिन से ले कर महीने और सालो तक ये व्रत कर सकते है।
मौन वृत किसी भी अवस्था किसी भी वर्ग या लिंग का व्यक्ति ले सकता है।
इसके लिए कोई दिन तिथि या वार निर्धारित नहीं है आप जब कहे मौन व्रत का संकल्प ले सकते है।
दृढ़ संकल्प से ही लौकिक और पारलौकिक सिद्धियाँ होती है।
वाणी में संयमता आती है।
मौन व्रत से आत्म बल में निरंतर वृद्धि होती है।
मनुष्य सत्य की ओर बढ़ता है, भगवान् सत्य स्वरुप है और उसका विधान भी सत्य है।
मौन व्रत से मन में उठने वाले विकारो पर स्वतः नियंत्रण हो जाता है।
अनावश्यक वाद विवाद से बचा जा सकता है।
राग और द्वेष पर तो विजय मिल ही जाती है, मन और इन्द्रियों का संयम हो जाता है, जिससे साधन भजन में एकाग्रता आती है।
निष्ठापूर्वक सप्ताह में एक दिन मौन व्रत रख कर भगवन्नाम का जप करना श्रेष्ठ है।
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Good.bahut sundar.
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