अक्षय नवमी का पौराणिक महत्त्व जाने !!!
हिन्दू सनातन धर्म के अनुसार कार्तिक शुक्ल नवमी को अक्षय नवमी या आंवला नवमी के रूप में जाना जाता है। मान्यता के अनुसार कार्तिक शुक्ल नवमी से लेकर कार्तिक पूर्णिमा तक भगवान् विष्णु आँवले के वृक्ष में निवास करते है। इस दिन जो भी व्यक्ति आँवले के जड़ में दूध चढ़ाता है और विधि विधान से भगवान् विष्णु का पूजन करता है उसको अक्षय पुण्य की प्राप्ति होती है। इस दिन किया गया दान कभी नष्ट नहीं होता बल्कि कई गुना अधिक फल देता है। पुत्र प्राप्ति के लिए महिलाये इस दिन आँवले के वृक्ष की पूजन करती है।
मान्यता के अनुसार अक्षय नवमी के दिन ही द्वापर युग का प्रारम्भ माना जाता है। अक्षय नवमी के दिन ही भगवान ने कुष्माण्डक नामक दैत्य को मारा था और उस दैत्य के रोम से कुष्माण्ड की बेल उत्पन्न हुई। इसी कारण इस दिन कुष्माण्ड का दान करने से उत्तम फल की प्राप्ति होती है। इसमें गन्ध, पुष्प और अक्षत से कुष्माण्ड का पूजन करना चाहिये।
आंवला पूजा के लिए प्रचलित कथा के अनुसार एक वैश्य की पत्नी को पुत्र की प्राप्ति नहीं हो रही थी। उसने अपनी पड़ोसन से कुछ उपाय पूछा तब पड़ोसन ने कहा की तू किसी बच्चे की बाली भैरव को दे दे तब पड़ोसन के कहे अनुसार उसने एक बच्चे की बलि भैरव देव को दे दी। परिणाम उल्टा हुआ उसके कोई पुत्र तो नहीं हुआ पर वह महिला कुष्ट रोग से पीड़ित हो गई। तब वह महिला गंगा जी के शरण में गई और गंगा जी ने उसे कार्तिक शुक्ल पक्ष की नवमी को आँवला के वृक्ष की विधिवत पूजा का विधान बताया और उस वैश्य महिला न विधि विधान के साथ आँवला के वृक्ष की पूजा अर्चना की जिसके फल स्वरुप वह कुष्ट रोग से मुक्त हो गई और 9 महीने के बाद एक सुन्दर पुत्र को जन्म दिया।
हिन्दू सनातन धर्म के अनुसार कार्तिक शुक्ल नवमी को अक्षय नवमी या आंवला नवमी के रूप में जाना जाता है। मान्यता के अनुसार कार्तिक शुक्ल नवमी से लेकर कार्तिक पूर्णिमा तक भगवान् विष्णु आँवले के वृक्ष में निवास करते है। इस दिन जो भी व्यक्ति आँवले के जड़ में दूध चढ़ाता है और विधि विधान से भगवान् विष्णु का पूजन करता है उसको अक्षय पुण्य की प्राप्ति होती है। इस दिन किया गया दान कभी नष्ट नहीं होता बल्कि कई गुना अधिक फल देता है। पुत्र प्राप्ति के लिए महिलाये इस दिन आँवले के वृक्ष की पूजन करती है।
मान्यता के अनुसार अक्षय नवमी के दिन ही द्वापर युग का प्रारम्भ माना जाता है। अक्षय नवमी के दिन ही भगवान ने कुष्माण्डक नामक दैत्य को मारा था और उस दैत्य के रोम से कुष्माण्ड की बेल उत्पन्न हुई। इसी कारण इस दिन कुष्माण्ड का दान करने से उत्तम फल की प्राप्ति होती है। इसमें गन्ध, पुष्प और अक्षत से कुष्माण्ड का पूजन करना चाहिये।
आंवला पूजा के लिए प्रचलित कथा के अनुसार एक वैश्य की पत्नी को पुत्र की प्राप्ति नहीं हो रही थी। उसने अपनी पड़ोसन से कुछ उपाय पूछा तब पड़ोसन ने कहा की तू किसी बच्चे की बाली भैरव को दे दे तब पड़ोसन के कहे अनुसार उसने एक बच्चे की बलि भैरव देव को दे दी। परिणाम उल्टा हुआ उसके कोई पुत्र तो नहीं हुआ पर वह महिला कुष्ट रोग से पीड़ित हो गई। तब वह महिला गंगा जी के शरण में गई और गंगा जी ने उसे कार्तिक शुक्ल पक्ष की नवमी को आँवला के वृक्ष की विधिवत पूजा का विधान बताया और उस वैश्य महिला न विधि विधान के साथ आँवला के वृक्ष की पूजा अर्चना की जिसके फल स्वरुप वह कुष्ट रोग से मुक्त हो गई और 9 महीने के बाद एक सुन्दर पुत्र को जन्म दिया।
अलौकिक।
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