बुधवार, 12 अप्रैल 2017

शिवजी और विष्णु भगवान् के रंगो में विरोधाभास क्यों है?

हमने प्रायः एक बात अपने धर्म शास्त्रो में पड़ी है या धार्मिक चित्रो में देखा है की श्रीहरि नारायण को श्याम वर्ण और भगवान् शंकर को श्वेत वर्ण दिखाया और बताया जाता है। आइये अब हम एक एक करके दोनों देवो के प्रवृत्तियों पर विचार करे:-



शिवजी:- शिवजी संघारक देव है अर्थात शिवजी का प्रमुख कार्य सृष्टि का विनाश या संघार करना है। शिवजी तमो गुण प्रधान है। शिवजी सारे अमंगलों को ग्रहण करते है। उनका कोई घर द्वार नहीं है कैलाश में खुले में उनका आसन होता है। इन सभी प्रवृत्तियों को देखते हुए वस्तुतः शिवजी का रंग श्याम वर्ण का होना चाहिए, पर शास्त्रो में शिवजी के रंग को श्वेत बताया गया है। "कर्पूरगौरं करुणावतारं" शिवजी कर्पूर के सामान गोरे है।

"कर्पूरगौरं करुणावतारं संसारसारं भुजगेन्द्रहारम् । 

सदा बसन्तं हृदयारबिन्दे भबं भवानीसहितं नमामि।"


श्रीहरि नारायण:- श्रीहरि नारायण पालक देव है अर्थात सम्पूर्ण सृष्टि के पालन पोषण का कार्य इनके द्वारा संपादित होता है। श्रीहरि में सत्त्व गुण प्रधान है। भगवान् श्रीहरि नारायण मंगल मूर्ति है। दिव्य बैकुंठ में उनका वास है। इन सभी प्रवृत्तियों को देखते हुए वस्तुतः श्रीहरि नारायण का रंग श्वेत होना चाहिए, पर शास्त्रो में उनका रंग श्याम वर्ण बताया गया है। 

"शांताकारं भुजगशयनं पद्मनाभं सुरेशम् ,
 विश्वाधारं गगनसदृशं मेघवर्णं शुभाङ्गम् | 
लक्ष्मीकान्तं कमलनयनं योगिभिर्ध्यानगम्यम् , 
वन्दे विष्णुं भवभयहरं सर्वलोकैकनाथम् || "


अब प्रश्न यह उठता है की जिनका रंग श्याम होना चाहिए ऐसे शिवजी गौर वर्ण और जिनका रंग गौर होना चाहिए ऐसे नारायण का रंग श्याम कैसे हो गया?

इसके निर्णय के लिए एक सिद्धांत पर ध्यान देना होगा। सिद्धांत है की आप जिस वस्तु या व्यक्ति का निरंतर चिंतन और मनन करते है उसके अचार-विचार रंग-रूप ध्यान करने वाले को प्राप्त हो जाता है।

शिवजी निरंतर श्रीहरि नारायण के ध्यान में मगन रहते है और श्रीहरि सतत अपने इष्ट शिवजी का ध्यान करते है। अतः नारायण प्रभु का ध्यान करते करते उनका श्वेत वर्ण शिवजी को प्राप्त हो गया और शिवजी का ध्यान करते करते शिवजी का श्याम वर्ण नारायण प्रभू को प्राप्त हो गया।

शिवजी और नारायण प्रभु दोनों नाम और गुणों के आधार पर अलग हो सकते है पर वास्तव में इन दोनों में कोई भेद नहीं है। दोनों में कोई बड़ा या छोटा नहीं है। दोनों एक ही स्वरुप है और निरंतर एक दूसरे का ध्यान करते है। दोनों में एकात्म भाव है। 

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