गुरुवार, 13 अप्रैल 2017

हनुमानजी ने किया था मायावी कालनेमि का उद्धार!!

लक्षमण जी को शक्ति लगना:- श्रीराम और रावण के युद्ध के दौरान जब लक्ष्मण जी को शक्ति लगी तब हनुमानजी लंका जा कर सुसेन नामक वैध को उपचार के लिए लाये। वैध ने कहा इस समय लक्ष्मण के प्राण केवल संजीवनी बूटी से ही बचाया जा सकता है यदि कोई द्रोण पर्वत जा कर एक ही रात में संजीवनी ब्यूटी ले आये और उसका अर्क बना कर लक्ष्मण को पिलाया जाए तब लक्ष्मण के प्राण बचाया जा सकता है।

"राम पदारबिंद सिर नायउ आइ सुषेन।
कहा नाम गिरि औषधी जाहु पवनसुत लेन ॥"

हनुमानजी का संजीवनी लाने जाना:- वैद के वचन सुने तब श्रीराम चिंता में डूब गए की कौन ऐसा है जो इस कार्य को कर सके। तब हनुमानजी ने बुटी लाने की बात कही और 
रामजी को प्रणाम कर श्रीराम नाम लेते हुए आकाश मार्ग से संजीवनी लाने उड़ चले।

रावण-कालनेमी संवाद:- श्रीराम की सेना में रावण का एक गुप्तचर था उसने जा कर रावण से सारा वृत्तांत कहा। रावण को जब यह बात पता चली तब वह हनुमानजी को संजीवनी लाने से रोकने के लिए कालनेमि नाम के राक्षस के पास गए और उस से हनुमानजी को मार्ग में ही रोकने और समाप्त करने को कहने लगे। 

"राम चरन सरसिज उर राखी। चला प्रभंजनसुत बल भाषी॥
उहाँ दूत एक मरमु जनावा। रावनु कालनेमि गृह आवा॥"

कालनेमि था तो राक्षस पर विभीषण की भाँती वह भी शास्त्रो का मर्मज्ञ था। उसने रावण को समझाने का प्रयास किया की वह हठ त्याग कर सीता को वापस लौटा दे और श्रीराम की शरण में चला जाए।

 कालनेमि ने कहा की जिस हनुमान ने आप के सामने लंका में प्रवेश किया, आप के वीर पुत्र अक्षय कुमार को मार डाला, आपकी लंका नगरी को जला दिया और समुद्र को लांघ कर सीता की सुचना श्रीराम को दी तब आप जैसा परम प्रतापी उसका कुछ नहीं कर पाये तो मै किस प्रकार उसका मार्ग रोक सकता हूँ।

"भजि रघुपति करु हित आपना। छाँड़हु नाथ मृषा जल्पना॥
नील कंज तनु सुंदर स्यामा। हृदयँ राखु लोचनाभिरामा॥"

 पर विनाश काले विपरीत बुद्धि। रावण को उसकी बातें समझ नहीं आई और वह कालनेमि को ही राजाज्ञा के उलंघन के लिए प्राणदंड देने की बात कहने लगा।

"सुनि दसकंठ रिसान अति तेहिं मन कीन्ह बिचार।
राम दूत कर मरौं बरु यह खल रत मल भार॥"

 कालनेमि ने सोचा की जब मरना निश्चित है तो इस पापी के हाथो क्यों मरना हनुमान जैसे भक्त के हाथो मरने में ही कल्याण है अतः कालनेमि ने रावण की बात मान कर हनुमानजी का मार्ग रोकने को निकल गया।

कालनेमि का मयाजाल:- कालनेमि वायु वेग से आकाश में उड़ाते हुए हनुमानजी से आगे निकल गया और एक छदम् मुनि का वेश बना कर अपना एक आश्रम, सुन्दर तालाब, बाग़, उपवन आदि बना कर एक वृक्ष के नीचे बैठ गया और राम नाम का झूठा जाप करने लगा। हनुमानजी ने यह दृश्य देखा तो उसे रामजी का कोई भक्त जानकार वहा ठहर गए और जल की याचना की। 

"अस कहि चला रचिसि मग माया। सर मंदिर बर बाग बनाया॥
मारुतसुत देखा सुभ आश्रम। मुनिहि बूझि जल पियौं जाइ श्रम॥"

हनुमानजी-कालनेमि संवाद:-  मुनि वेश धारण किये कालनेमि ने हनुमानजी को पानी पिलाया और हनुमानजी को राम-रावण युद्ध का सारा वृत्तांत बता दिया क़ि कैसे रावण ने सीता का हरण किया, तुमने लंका में सीता की खोज की और फिर सेतु बना कर लंका तक वानर सेना कैसे पहुची और लक्ष्मण को कैसे शक्ति लगी और तुम उसके प्राण बचाने संजीवनी लाने जा रहे हो। 

"मागा जल तेहिं दीन्ह कमंडल। कह कपि नहिं अघाउँ थोरें जल॥
सर मज्जन करि आतुर आवहु। दिच्छा देउँ ग्यान जेहिं पावहु॥"

हनुमानजी उसके इस ज्ञान से बहुत प्रभावित हुए। हनुमानजी ने कहा आप तो त्रिकालदर्शी हो आप को सब पता है आप यह बताइये की आगे क्या होगा। तब कालनेमि ने कहा की तू मेरा चेला बनजा तो मैं तेरा सब काम सिद्ध कर दू। 

तुझे ऐसा मन्त्र बता दू जिससे तुझे भूख प्यास नहीं लगेगी और संजीवनी सहित तुझे इसी क्षण लंका भेज सकता हूँ। हनुमानजी ने कहा अगर आप ऐसा कर सकते है तो आप की बड़ी कृपा होगी आप मुझे अपना चेला बना लीजिये।

हनुमानजी द्वारा मगरी का उद्धार:- कालनेमि ने कहा की ऐसे नहीं पहले जाकर तालाब में स्नान करके आओ फिर मै तूुुुम्हे दीक्षा दूंँगा। फिर हनुमानजी तालाब की तरफ बड़े वहां एक मगरी थी जिसने हनुमानजी के जल में प्रवेश करते ही उनके पैर पकड़ लिए। 

"सर पैठत कपि पद गहा मकरीं तब अकुलान।
मारी सो धरि दिब्य तनु चली गगन चढ़ि जान॥"

हनुमानजी ने उस मगरी को जोर से घुसा मरा तब उस मगरी के प्राण निकल गए और वह एक सुन्दर अप्सरा बन कर प्रकट हो गई। उस अप्सरा ने हनुमानजी को कालनेमि की वास्तविक्ता बता दिया कि यह छदम् वेश बनाकर कालनेमि को रावण ने आप का मार्ग रोकने भेजा है। 

कालनेमि का उद्धार:- हनुमानजी को जब यह बात पता चली तब वे कालनेमि के पास गए और उससे कहा की लो गुरुदेव मै नहा कर आ गया पर मेरा एक सिद्धांत है मै दीक्षा लेने के पहले ही दक्षिणा देता हूँ। कालनेमि ने कहा जैसी तुम्हारी इक्षा। 

"सिर लंगूर लपेटि पछारा। निज तनु प्रगटेसि मरती बारा॥
राम राम कहि छाड़ेसि प्राना। सुनि मन हरषि चलेउ हनुमाना॥"

हनुमानजी ने तुरंत अपनी पूँछ का विस्तार किया और कालनेमि को उसमे फंसा कर धरती में पटक दिया हनुमानजी के प्रहार से कालनेमि के प्राण पखेरू उड़ गए और कालनेमि श्रीराम का नाम लेता हुआ परम गति को प्राप्त हुआ।

हनुमानजी आगे संजीवनी लेने चले गए और संजीवनी ला कर लक्ष्मण के प्राण बचाये। इस प्रकार संजीवनी बुटी लाने के प्रसंग में हनुमानजी ने मगरी और कालनेमि नाम के राक्षस का उद्धार किया।

                ।।जय श्रीराम।।
                ।।जय हनुमान।।

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