सम्पूर्ण सृष्टि कश्यप ऋषि की संतान है चाहे वह देवता हो या दानव सभी उनके पुत्र है, परंतु राक्षसो में तमो गुण की प्रधानता होने के कारण प्रायः वे देवताओ पर आक्रमण करते रहते है। इस युद्ध में कभी देवताओ की, तो कभी राक्षसो की विजय होती है।
जब राजा बलि दैत्यों के स्वामी बने तब उसने देवताओ को पराजित कर स्वर्ग पर अपना अधिकार कर लिया। सभी देवता पितामह ब्रह्मा जी की शरण में गए। ब्रह्मा जी ने देवताओ से भगवान् नारायण की स्तुति करने और उनसे सलाह लेने की प्रेरणा दी।
ब्रह्माजी के वचन अनुसार देवताओ ने भगवान् विष्णु की प्रार्थना की तब भगवान् विष्णु ने उनसे कहा की तुम देवता जा कर दैत्यों के स्वामी बलि से मित्रता करो और उन्हें अमृत का प्रलोभन दे कर समुद्र मंथन करने की सलाह दी और कहा की तुम दैत्य और देवता दोनों एक ही पिता की संतान हो यदि तुम अमृत का पान कर लो फिर लाख तुम्हारे बीच झगड़े होंगे पर मरेगा कोई नहीं।
श्रीहरि की प्रेरणा अनुसार देवताओ ने दैत्यों से सन्धि कर ली और अमृत पाने की लालसा में समुद्र मंथन को तैयार हो गए। इस कार्य की सिद्धि के लिए वासुकि नाग की नेति और मंदराचल पर्वत को मथानी बनने के लिए तैयार किया गया।
इसप्रकार जब समुद्र मंथन प्रारम्भ हुआ तब आधारहीन मंदराचल पर्वत समुद्र में डूबने लगा। यह देख कर देवताओ ने पुनः भगवान् की स्तुति की क़ि हे प्रभु आपकी ही प्रेरणा से हमने ये मंथन प्रारम्भ किया है अतः आप ही इस समस्या का समाधान करें।
देवताओ की प्राथना सुनकर भगवान् नारायण ने एक लाख योजन विस्तार वाले विशाल कच्छप का अवतार धारण किया और उस विशाल मंदराचल पर्वत को अपने पीठ पर धारण कर समुद्र मंथन का कार्य संपन्न कराया। इस प्रकार देवताओ के हित के लिए भगवान् विष्णु ने कच्छप या कमठ अवतार धारण किया।
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