गुरुवार, 10 नवंबर 2016

जानिये देवोत्थानी (देवउठनी) एकादशी का महात्म!!!

जाने देवोत्थानी (देवउठनी) एकादशी का महात्म

श्रीमद्भागवत महापुराण के अनुसार सभी एकादशी का व्रत भगवान् श्री हरि विष्णु की प्रसन्नता के लिए किया जाता है और उनमे कार्तिक शुक्ल पक्ष की एकादशी सर्वोत्तम मानी जाती है। इस एकादशी को देवोत्थानी, देवउठनी या प्रबोधिनी एकादशी कहा जाता है।

देव उत्थान का अर्थ होता है भगवान् का निद्रा से जागना या उठना। यह निद्रा सांकेतिक होती है जो प्रलय काल की निद्रा से भिन्न है। जब भगवान् विष्णु ने शंखचूर नामक दैत्य का वध किया तो युद्ध के कारण भगवान् तो थकान हो गईं और भगवान् आषाढ़ शुक्ल एकादशी के दिन चार मास के लिए योग निद्रा में चले गए और फिर कार्तिक शुक्ल एकादशी को योग निद्रा से जागृत हुए इस कारण इस एकादशी को देव उत्थानि एकादशी कहा जाता है।

चूँकि भगवान् विष्णु इन चार माह में सांकेतिक निद्रा में रहते है अतः इस चौमास में कोई बड़ा कार्य जैसे विवाह गृह पूजन मुण्डन आदि नहीं किया जाता है। परंतु चौमास में जप तप और पूजन का विधान बताया गया है।

इस दिन एकादशी का व्रत निर्जल रह कर किया जाता है। इस दिन ब्रह्म मुहूर्त में उठ कर भगवान् विष्णु के विभिन्न अवतारो के नाम का जाप और ध्यान करना चाहिए। संध्या के समय भगवान् की पूजा शालिग्राम के रूप में करना चाहिए। भगवान् की पूजन हो जाने के बाद चरणामृत ग्रहण कर फलाहार करना चाहिए। व्रत करने वालो को द्वादशी के दिन सुबह स्नान ध्यान करके ब्राह्मण को भोजन कराना चाहिए और दक्षिणा देकर विदा करना चाहिए। व्रत का परायण तुलसी पत्र ग्रहण कर करना चाहिए।

इस दिन तुलसी विवाह करने की मान्यता है जिसमे तुलसी का विवाह भगवान् विष्णु के स्वरुप शालिग्राम से करना चाहिए। तुलसी विवाह विधि पूर्वक करने वाले को कन्यादान का फल प्राप्त होता है और भगवान् विष्णु की कृपा प्राप्त होती है। पद्म पुराण में तुलसी विवाह की कथा सविस्तार बताई गई है।



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