किसी गाँव में एक के निर्धन केवट रहता था। वह श्रीनाथ जी का परम भक्त था और श्रीनाथ जी के सहारे ही अपना जीवन यापन करता था। उसके 2 पुत्र और एक विवाह योग्य पुत्री थी।
एक दिन उसके मन में ये विचार आया क़ि अपनी पुत्री का विवाह किसी योग्य वर की तलाश करके कर देना चाहिए। अपना यह विचार उसने अपने पुत्रो से कहा और उसके पुत्रो ने उसका समर्थन किया। परंतु पुत्री के विवाह के लिए उनके पास धन नहीं था। केवट के बड़े पुत्र ने सलाह दिया की गाँव के मुन्सी जी से ब्याज में पैसा लेकर विवाह कर देना चाहिए और फिर मेहनत करके धीरे धीरे उसका ऋण चूका देंगे।
सभी को ये बात जॉच गई। फिर केवट मुन्सी जी के पास पंहुचा और वहां मुन्सी जी ने लिखा-पड़ी करवा कर केवट को पैसे दे दिए। केवट ने उस धन से अपनी पुत्री का विवाह संपन्न कराया। फिर केवट और उसके दोनों पुत्र अपनी मेहनत से धन कमा कर ब्याज सहित पैसा मुन्सी जी को देने के लिए इकठ्ठा कर लिए।
केवट धन लेकर मुन्सी जी के पास गया और उसके पैसे ब्याज सहित लौटा दिया। मुन्सी जी ने पूछा की बेटी की विवाह अच्छे से कर लिए केवट ? केवट ने जवाब दिया की श्रीनाथ जी की कृपा से सब अच्छे से हो गया। फिर मुन्सी ने पूछा ये धन कहा से इकठ्ठा किये ? केवट ने कहा श्रीनाथ जी की कृपा से धन भी इकठ्ठा हो गया। मुन्सी ने फिर धन प्राप्ति की रसीद बनाई और केवट को दे दिया।
केवट बहुत सीधा साधा था तो मुन्सी ने उसका फायदा उठाने का सोचा और केवट को किसी बहाने बहार भेजा और एक झूठी रसीद बना कर रख लिया। फिर जब केवट वापस आया तब उससे रसींद की अदला बदली कर लिया। अब केवट बेपढ़ा लिखा था सो गलत रशीद ले कर वो घर चला गया।
बेटी के विवाह के बाद उसे लगा की अब घर का त्याग कर देना चाहिए तो वह गाँव में ही स्थित श्रीनाथ जी के मंदिर में जा कर रहने लगा और भजन में अपना समय व्यतीत करने लगा। कुछ दिनों के बाद मुन्सी ने अदालत में केवट के खिलाफ मुकदमा चला दिया की केवट ने मेरे पैसे नहीं लौटाये।
फिर क्या था अदालत ने केवट के लिए समन जारी कर दिया गया और केवट को अदालत में उपस्थित होना पड़ा। अदालत के जो जज साहब थे वो बहुत ही सुलझे हुए अनुभवी इंसान थे। उन्होंने केवट से पूछा की तुमने मुन्सी से पैसा लिया था ? केवट बोला जी साहब । फिर जज ने पूछा की तुमने मुन्सी का पैसा लौटाया ? केवट ने कहा जी साहब लौटा दिया। फिर जज ने केवट से रशीद दिखने कहा तो केवट ने मुन्सी द्वारा दिया गया नकली रशीद दिखा दिया।
फिर जज साहब ने कहा की पैसे देते समय और कोई था तुम्हारे साथ केंवट बोला श्रीनाथ जी थे फिर जज साहब ने कहा की ये तो नकली रशीद है केंवट बोला के श्रीनाथ जी जाने। जज साहब बहुत ही दयालु थे उनको लगा की केवट सही कह रहा है मुझे इसकी जांच करनी चाहिए और जज साहब ने अगली तारीख दे दी और श्रीनाथ के नाम से समन जारी कर दिया।
अब समन जारी तो हो गया पर उस गाँव में श्रीनाथ नाम का कोई इंसान नहीं रहता था तो अदालत के कर्मचारी पूछते पूछते उसी मंदिर में पहुच गए और वहां के पुजारी से कहा की श्रीनाथ यही रहता है पुजारी ने कहा हा यही रहते है तो कर्मचारी ने सोचा की वो पंडित ही श्रीनाथ होगा और वो समन का कागज उस पुजारी को दे दिया और पावती ले कर वापस आ गया।
फिर जब पुजारी ने समन पड़ा तब उसे बड़ा आश्चर्य हुआ के इतने सीधे साधे केवट पर पैसे न देने का आरोप मुन्सी ने लगाया है और भगवान् पर उसे इतना भरोसा के उनको ही इसने गवाह बनाया है। पुजारी की आँखों में आंसू आ गए और वो तारीख वाले दिन सुबह उठ कर भगवान् के पास प्रार्थना करने लगे की हे भगवन ये केवंट आप पर सच्ची श्राद्ध रखते हुए आप पर भरोशा किया है तो आप उसके भरोसे को मत तोडना प्रभु आप किसी भी रूप में जरूर जाइए आज और अपने भक्त की लाज रखिये।
फिर सब लोग अदालत में इकठ्ठा हुए और अदालत की कार्यवाही शुरू हो गईं। जज साहब ने श्रीनाथ को हाजिर होने कहा और अदालत के कर्मचारी ने आवाज लगाईं श्रीनाथ हाजिर हो! तभी श्रीनाथ जी ने एक बूढे का रूप धारण कर अदालत में आए और वहां आ कर जज साहब से बोले की केंवट ने मेरे सामने मुन्सी का सारा पैसा लौटाया है और पैसा लौटाने की वास्तविक रशीद मुन्सी ने बदल कर केवट को धोखा दिया है और सही रशीद अभी भी मुन्सी के तिजोरी में रक्खी हुई है।
इतना सुनते ही जज साहब ने मुन्सी को हिरासत में ले कर सिपाहियो को आदेश दिया की जा कर तिजोरी में रशीद है की नहीं देखे। आज्ञा पाते ही सिपाही मुन्सी के घर जा कर तिजोरी को देखा तो वहां सचमुच में पैसा लौटाने की रशीद रक्खी हुई थी। फिर क्या था भगवान् श्रीनाथ जी वहाँ से अंतर्ध्यान हो गए और जज साहब ने केवट को बाईज्जत बरी कर दिया।
फैसला सुनाकर जब जज साहब घर आए तो उनका मन बहुत व्यथित था की क्या वो बुडा व्यक्ति जो की श्रीनाथ जी के वेश में अदालत आया था वो वास्तव में वही श्री नाथ है जो केवट के द्वारा मुन्सी को पैसे लौटाते समय मौजूद था या कोई और?
इस उथल पुथल के बीच जज साहब ने वास्तविकता का पता लगाने का निशचय किया और उसी गाँव पहुच गए जहाँ केवट रहता था और श्रीनाथ नाम के व्यक्ति का पता पूछने लगे पर उनको सभी जगह से निराशा ही हाथ लगी। फिर वो पूछते पूछते उसी श्रीनाथजी के मंदिर पहुच गए और वह पुजारी जी से पूछने लगे की क्या यहाँ कोई श्रीनाथ नाम का इंसान रहता है। तब पुजारीजी मुस्कुरा कर बोले नहीं यहाँ कोई श्रीनाथ नाम का इंसान नहीं रहता पर हाँ ये मंदिर जरूर श्रीनाथ जी का है और केंवट की सच्ची श्रद्धा के वजह से ही वो आप के अदालत में हाजिर हुए थे वरना जिनके दरबार में राज रंक सभी हाजरी लगाते है उनको कही जाने की क्या आवश्यकता ?
इतना सुनते ही जज साहब के आँखों से आंसू अनायास ही बहने लगे और उनको बहोत ग्लानि हुई क़ि आज उन्होंने ये कैसा अनर्थ कर दिया की स्वयं श्रीनाथ जी भगवान् को उनकी अदालत में आना पड़ा। इस घटना के प्रभाव के कारन जज साहब ने नौकरी से इस्तीफा दे दिया और उसी श्रीनाथ जी के मंदिर के बाहर कुटिया बना कर रहने लगे परंतु कभी मंदिर में प्रवेश नहीं किया।
कोई पूछता क़ि आप मंदिर में प्रवेश क्यों नहीं करते तो बस ये कह देते थे की मेरी वजह से श्रीनाथ जी को मंदिर से बहार अदालत में आना पड़ा था तो मै उनका अपराधी हु और उनको चेहरा नहीं दिखा सकता । मंदिर के बहार रोज आ कर वहाँ की मिटटी को माथे से लगा कर लौट जाते थे।
कथा का सार यह है की यदि आप के ह्रदय में प्रभु के प्रति सच्ची श्रद्धा है, तो वो आप की लाज हमेशा रखते है, बस आपको उन पर पूरी तरह भरोसा होना चाहिए, जिस तरह भगवान् ने केवट की रक्षा की। उसी तरह प्रभु अपने भक्तो को कष्ट देने वालो को दंड भी दिलाते है जैसा की मुन्सी को मिला। अंत में जज साहब जिन्होंने केवट की बातो पर भरोसा करके घटना की जाच कराइ उनके मन में कही न कही आध्यात्म भाव था अतः उसके कल्याण के लिए प्रभु ने उसके मन में वैराग्य भाव उत्पन्न कर विरक्त बना दिया।
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